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नैतिक उत्कर्ष | २९६
बन जाऊँ, नगर का नाश कर कर दूं, आग लगा दूँ, आकाश में उड़ जाऊँ, विद्याधर बन जाऊँ आदि दुनि ।
(२) प्रमादाचरित-प्रमाद का अर्थ है, असावधानी, आलस्य तथा निरर्थक क्रिया कलाप । उदाहरणार्थ-निरर्थक जमीन खोदना, व्यर्थ ही जल आदि का अपव्यय करना, वनस्पति का छेदन-भेदन करना, घी-तेलदूध आदि के बर्तन खुले रख देना, लकड़ी, पानी आदि बिना देखे-भाले काम में लेना ।
(३) हिंस्रप्रदान-दूसरों को हिंसाकारी साधन देना।
(४) पापोपदेश-जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, दूसरों को पाप कर्मों (हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म, परिग्रह) का उपदेश देना दुष्कर्म बढ़ाने वाले उपाय बताना। ___यह चारों प्रकार की निरर्थक प्रवृत्तियां हैं,जिनसे अपना लाभ तो कुछ भी नहीं होता, समय की बरबादी तथा अशुभ चिन्तन एवं कुप्रवृत्तियों का संचार ही होता है।
__ अपध्यान एक प्रकार का मानसिक दुश्चिन्तन है । प्रमाद का आचरण हिंसा की संभावना को बढ़ाता है साथ ही स्वयं अपने शरीर में आलस्य की अधिकता हो जाने से अकर्मण्यता को भी बढ़ावा मिलता है। ... इसी प्रकार हिंसक साधन प्रदान करने से व्यक्ति स्वयं कानून के शिकंजे में फंस सकता है; क्योंकि यदि उसके शस्त्र से दूसरे ने किसी मानव की हिंसा कर दी तो कानून उसी को दण्डित करेगा जिसके नाम उस साधन (पिस्तौल, बन्दूक आदि) का लायसेंस होगा।
पापोपदेश भी समाज, राष्ट्र और देश में अनैतिक प्रवृत्तियों को ही बढ़ाता है, उनका प्रसार करता है।
१. वैरिघातो नरेन्द्रत्वं पुरघाताऽग्निदीपने । खेचरत्वाद्यपध्यानं मुहूर्तात्परतस्त्यजेत् ।।
-योगशास्त्र ३/७५ २. क्षितिसलिल दहन पवनारंभ-विफलं वनस्पतिच्छेदनं । सरणं सारणमपि च प्रमादचर्या प्रभाषन्ते ।
-रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक ८०
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