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________________ २८४ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन यह पांचों घोर अनैतिकताएँ हैं। इनके परिणाम अति भयंकर होते हैं। ___ वर अथवा कन्या के विषय में झूठ बोलना, गुणवती कन्या में दोष लगाना, वर की आमदनी अधिक बताना, अधिक दहेज का वचन देकर कम देना, अथवा वर-पक्ष की ओर से दहेज के लिए कन्या पक्ष को विवश करना- इन सबका परिणाम प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। गो-पशु जाति-उपलक्षण से यहां वाहन-कार, स्कूटर ऐरोप्लेन पनडुब्बी आदि सभी यातायात के साधनों को समझना चाहिए । इनके संबंध में झठ बोलने का कितना भयंकर दुष्परिणाम होता है तथा व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के लिए कितना घातक होता है आदि बातें आज किसी से छिपी नहीं रही हैं। भूमि (खेत या प्रापर्टी) तथा भूमि से प्राप्त होने वाली वस्तुओं के विषय में झूठ का भी भयंकर परिणाम होता है । भूमि-जमीन तो लोक में झगड़े को जड़ कही जाती है । इसके लिए कितनी हिंसाएँ-हत्याएँ होती हैं, परिवार उजड़ जाते हैं, इसका अनुमान लगाना भी कठिन है। इसी प्रकार झूठी गवाही देना और किसी की धरोहर को दबाने के लिए झूठ बोलना भी व्यक्ति के साथ ही सामाजिक संघर्ष व विग्रह का कारण बनती हैं। नीतिशास्त्रीय मर्यादा के अनुसार यह सभी घोर अशुभ प्रत्यय हैं । इनका आचरण करने वाले व्यक्ति की गणना अनैतिक व्यक्तियों में की जाती है। यह सब दुर्नीतियाँ हैं और इनके परिणाम सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय सभी रूपों में अति घृणित होते हैं। सत्याणुव्रत के पांच अतिचार कहे गये हैं, वे भी अनैतिक आचरण को ही द्योतित करते हैं । वे पांच अतिचार' हैं - (१) सहसाभ्याख्यान-सत्यासत्य का निर्णय किये बिना किसी पर झूठा दोष लगा देना, किसी के प्रति गलत धारणा पैदा कर देना। १. (क) (१) सहस्साब्भक्खाणे (२) रहस्साब्भवखाणे, (३) सदारमंतभेए, (४) मोसुवएसे, (५) कूडलेहकरणे। -उपासकदशा, अभदेयवृत्ति, पृष्ठ ११ (ख) D. N. Bhargava : Jaina Ethics, p 118. (ग) K. C. Sogani : Ethical Doctrines in Jainism, p. 83. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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