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________________ नैतिक उत्कर्ष | २८३ स्थूल झूठ का अभिप्राय है - ऐसा मिथ्यावचन जो लोक में अपयश का कारण हो और सज्जनों द्वारा निन्दित हो; जिसके कारण मनुष्य समाज की दृष्टि में गिर जाय, घृणा का पात्र बने, समाज में विघटन की स्थिति पैदा हो और उसे अनैतिक समझा जाये । आगमों में असत्य' (मृषावाद) के पाँच रूप बताये हैं(१) कन्या अथवा वर के बारे में झूठ बोलना । (२) गाय (पशुधन) के विषय में झूठ बोलना । (३) भूमि (प्रॉपर्टी) के बारे में मिथ्याभाषण करना । (४) किसी की धरोहर को हजम करने के लिए मिथ्या बोलना । (५) झूठी साक्षी ( गवाही ) देना । इनके अतिरिक्त आत्म-प्रशंसा, पराई निन्दा, कटुवचन, विग्रह उत्पन्न करने वाले शब्द भी असत्य ही हैं । ये सभी लोकविरुद्ध, विश्वासघातजनक और पुण्य नाशक हैं । यहां कन्या से संपूर्ण मानव जाति उपलक्षित है । इसी प्रकार गाय से संपूर्ण पशु-पक्षी जगत और भूमि से जमीन तथा भूमि से प्राप्त होने वाले मणि- माणिक्य निधान, वनस्पति आदि भी अभिप्रेत हैं । १ ( क ) थूल मुसावायाओ वेरमणं, दुविहेणं तिविहेणं मणे गं वायाए कारणं । ( ख ) थूलमलीकं न वदति, न परान् वादयेत् सत्यमपि विपदे । यत्तद् वदन्ति सन्तः स्थूल मृषावाद वैरमणं ॥ - रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ५५ २ (क ) थूलगं मुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से य मुसावाये पंचविहे पण्णत्ते, . तं जहा - कन्नालीए, गवालीए, भोमालीए, णासावहारे, कूडस क्खिज्जे । —उपासकदशा १/६ अभयदेयवृत्ति, पृ० ११ (ख) कन्या - गो - भूम्यलीकानि, न्यासापहरणं तथा । कूटसाक्ष्यं च पचति, स्थूला सत्यान्यकीर्तयन् ॥ ३ सर्वलोक विरुद्ध यद् यद् विश्वसितघातकम् । यद् विपक्षस्य भूतस्य न वदेत् तदसूनृतम् ॥ ४ तेन सर्वमनुष्य जाति विषयमलीकमुपलक्षितम् । Jain Education International - उपासकदशांग १ For Personal & Private Use Only - योगशास्त्र २ / ५५ - योगशास्त्र, २ / ५५ - आवश्यक सूत्र टीका www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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