________________
जैन दृष्टि सम्मत-व्यावहारिक नीति के सोपान | २६१
जो व्यक्ति क्रूर है, क्रोधी है, अभिमानी है, अथवा छल कपट में निपुण है, उससे दया की आशा भी नहीं की जा सकती।
__इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति नैतिक भी नहीं हो सकता। क्रोध और अभिमान तो अनैतिक प्रत्यय हैं । यह तो मानव को अनैतिक तथा क्रूर आचरण की ओर ही प्रेरित करते हैं ।
नैतिक व्यक्ति का हृदय तो सौम्य होता हो है, उसके हृदय की सौम्य भावना उसके चेहरे पर, क्रिया-कलापों में, बोलने-चालने में स्पष्ट झलकती है। उसको देखने मात्र से अन्य व्यक्तियों के हृदय में सांत्वना का संचार होता है, उन्हें ऐसा लगता है कि इस व्यक्ति के सम्पर्क से हमारे कष्ट कम हो जायेंगे। ___सौम्य व्यक्ति की एक और अवश्यम्भावी विशेषता होती हैपरोपकार कर्मठता । परोपकार की भावना उसके हृदय में हिलोरें लेती है । उसका हृदय इतना कोमल और परःदुखकातर होता है कि वह बिना परोपकार किये रह ही नहीं सकता।
उपकार के दो भेद बताये हैं—(१) स्वोपकार और (२) परोपकार । स्वोपकार का अभिप्राय है-अपनी आत्मा का उपकार करना, अर्थात् हृदय में कलुषित, गहित भाव न लाना, ईर्ष्या, डाह आदि से बचना। निरन्तर आत्मा को ऊर्ध्वगामी विचारों से ओत-प्रोत रखना, नैतिक प्रगति की ओर अग्रसर होना।
परोपकार है-दूसरों के कष्टों को मिटाने का प्रयत्न करना। यह व्यावहारिक रूप है, लोक-प्रत्यक्ष है, नैतिक प्रगति इससे भी होती है, लोगों की दृष्टि में व्यक्ति नैतिक अथवा नीतिवान माना जाता है।
नोतिकारों ने मानवों की चार श्रेणियाँ बताई हैं
(१) जो दूसरों के सुख के लिए, अपने सुखों का भी त्याग कर देते हैं।
१ एके सत्पुरुषा परार्थघटका स्वार्थान् परित्यज्य ये, सामान्यास्तु परार्थमुद्यमभृतः स्वार्थाविरोधेन ये । तेऽमी मानुष राक्षसाः परहितं स्वार्थाय निघ्नन्ति ये । ये निघ्नन्ति निरर्थक परहितं ते के न जानीमहे ।
-उद्धृत-साधना के सूत्र, मधुकर मुनिजी, पृष्ठ ३१२ ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org