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जैन दृष्टि सम्मत-व्यावहारिक नीति के सोपान | २५५
पारिवारिक और सामाजिक परिवेश में अनेक प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं । उस समय उसे अपनी सामर्थ्य शक्ति का विचार करना आवश्यक है। उसे सोचना चाहिए–'मैं इस काम को पूरा कर भी सकूँगा या नहीं ? कहीं यह काम बीच में ही तो नहीं छोड़ना पड़ेगा ।'
लेकिन विवेकी और धैर्यशील व्यक्ति काम को या तो हाथ में लेते ही नहीं और लेते हैं तो पूरा करके ही दम लेते हैं। क्योंकि अधूरा काम सदा ही दुखदायी और अपयश का कारण बनता है ।।
(२४) व्रती और ज्ञानी जनों की सेवा सेवा का आशय नीतिशास्त्रीय अवधारणा के अनुसार इस सन्दर्भ में स्वागत, सत्कार, सम्मान और सुख-शान्ति पहुँचाना है। विवेकी मार्गानुसारी व्यक्ति का कर्तव्य है कि जिन लोगों ने आंशिक अथवा पूर्णरूप से अहिंसा, सत्य आदि व्रत ग्रहण कर लिए हैं, पाप-प्रवृत्तियों का त्याग कर दिया है उन्हें यथासंभव समाधि पहुँचाये। क्योंकि जो उनको समाधि सुख-शांति पहुंचाता है, उसे भी समाधि (सुख-शांति) की प्राप्ति होती है ।
इसी प्रकार जो अधिक ज्ञानी हैं, जिनकी विचारधारा हिताहितविवेक-अनुगामिनी है, उनको भी सुख-शान्ति पहुँचाना व्यक्ति का कर्तव्य है।
__ व्रतधारी और ज्ञानी व्यक्तियों की सेवा और सुख-शांति पहुँचाने से समाज में भी इन प्रवृत्तियों के प्रति अनुकूल वातावरण बनता है, नैतिकता का प्रसार होता है, लोगों को नीतिपूर्ण आचरण की प्रेरणा प्राप्त होती है, समाज की सर्वांगीण उन्नति होती है, लोगों में सेवा की भावना उदित होती है।
(२५) उत्तरदायित्व निभाना नीतिशास्त्र में पलायनवाद को कोई स्थान नहीं है। इसके प्रत्येक
१ Things half done always bring grief, sorrow and defamation.
-English Proverb २ वृत्तस्थज्ञानवृद्धानां पूजकः ।
-योगशास्त्र १/५४ ३ समाहि कारएणं तमेव समाहिं पडिलब्भइ ।
-भगवती सूत्र ७/१ ४ पोष्य पोषकः ।
-योगशास्त्र १/५४
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