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२५४ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन गिता का प्रवेश होगा, वह दूसरे व्यक्ति के सद्गुणों को ग्रहण करके अपने जीवन को सद्गुणों से भर लेगा।
___ सद्गुणों का क्षेत्र बहुत व्यापक है-लगन, निष्ठा, एकाग्रता, दया, अनुकम्पा आदि सभी सद्गुण हैं । यह सभी सद्गुण व्यक्ति को नैतिक और धार्मिक जीवन जीने में आधार स्तम्भ के समान हैं और इन्हीं से उसके व्यावहारिक जीवन तथा आचरण में चमक आती है। वह नैतिक गतिप्रगति करता है। (२२) देश-कालोचित आचरण
व्यावहारिक जीवन में सर्वाधिक महत्व आचरण का है। आचार्य जिनभद्र ने कहा है-ववहारोऽपि हु बलव । व्यक्ति जैसा आचरण करता है उसी के आधार पर उसके चरित्र का मूल्यांकन किया जाता है और निर्णय दिया जाता है कि अमुक व्यक्ति नैतिक है अथवा अनैतिक ।
इसीलिए विवेकशील व्यक्ति ऐसा कोई आचरण नहीं करता जिसकी तत्कालीन समाज (देश-काल) में निन्दा हो, लोग उपहास करें। वह अपने आचरण को देश काल के अनुरूप रखता है ।2 , ____ अनुरूप रखने का यह अर्थ भी नहीं है कि वह समाज में प्रचलित रूढ़ और हानिकारक परम्पराओं का अन्धानुकरण करता रहे । विवेकी सद्गृहस्थ उचित मर्यादाओं तथा परम्पराओं का पालन करता है । अपनी चर्या, आचरण और व्यवहार देश-काल की परिस्थितियों के विपरीत नहीं रखता; क्योंकि इससे परम्पराचुस्त लोग व्यर्थ ही उँगली उठाते हैं, आलोचना और निन्दा करते हैं, और व्यक्ति को अपयश का भागी बनना पड़ता है। इससे वातावरण विक्षुब्ध हो जाता है, और उसको भी संक्लेश होता है । ऐसी स्थिति में उसको नैतिक साधना भी सफलतापूर्वक नहीं चल पाती। (२३) सामर्थ्यासामर्थ्य की पहचान
व्यावहारिक जीवन बहुत ही उत्तरदायित्वपूर्ण होता है, व्यक्ति को
१ उद्धृत-साधना के सूत्र, श्री मधुक र मुनि, पृष्ठ २६४ २ अदेशकालश्चर्यां त्यजन् ।
__ --योगशास्त्र १/५४ तुलना करिए(क) यद्यपि शुद्धं, लोकविरुद्ध न करणीयं नाचरणीयम् ।।
(ख) While you are in Rome do as Romans Co. अंग्रेजी कहावत । ३ जानन्नपि बलाबलम् ।
--योगशास्त्र १/५४
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