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२५० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशोलन (१४) वित्तीय स्थिति के अनुसार वेशभूषा
__वेशभूषा का अभिप्राय आधुनिक युग में सभी प्रकार के बाहरी आडम्बरों से समझना चाहिए। इस सूत्र द्वारा यह सूचन किया गया है कि व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार ही अपने जीवन का स्तर रखना चाहिये । वैसे ही वस्त्र आदि पहनने चाहिए। आमदनी से अधिक
वस्त्रों पर खर्च करना, अधिक दिखावा करना अन्ततः व्यक्ति को परेशानी . में डाल देता है।
भारतीय समाज में मध्यम वित्तीय परिवार भी अपने को उच्चस्तरीय दिखाने का प्रयत्न करते हैं, वस्त्र आदि वैसे पहनते हैं । यह दिखावा ही उनकी त्रासद स्थिति का कारण बन जाता है।
मार्गानुसारी को सदा ही इस शोबाजी से बचना चाहिए। (१५) धर्म-श्रवण
यह सत्य है कि जब समाज में आडम्बर और फैशन का दिखावे का बोलबाला हो, आस-पास के तथा समाज के अन्य व्यक्ति दिखावा करते हों तो नैतिक व्यक्ति का मन भी उस ओर ललचाता है । इस लालच का प्रतिकार करने के लिए आचार्य ने बुद्धि के आठ गुणों से युक्त होकर धर्म-उपदेश सुनने का सूत्र दिया ।
धर्म-उपदेश सुनने और उसे हृदय में रमाने से व्यक्ति की बाह्य-मुखी वत्तियों का परिमार्जन होगा, लालसा कम होगी और उसके स्थान पर संतोष की अभिवृद्धि होगी। जीवन में सुख-शांति की सरिता प्रवाहित होगी
और वह नैतिक जीवन व्यतीत करने में सफल होगा। (१६-१७) आहार-विवेक
____ आहार के सम्बन्ध में आचार्य ने दो सूत्र दिये हैं - (१) अजीर्ण होने पर भोजन न करे और (२) नियत समय पर संतोष के साथ भोजन करे। इनमें से प्रथम सूत्र निषेधात्मक है और दूसरा विधेयात्मक । विधि-निषेध में संतुलन स्थापित करना हो आहार-विवेक कहलाता है।
१. अष्टभिर्धीगुणयुक्त। श्रृण्वानो धर्ममन्वहम् । -योगशास्त्र १/५१ २. बुद्धि के आठ गुण यह हैं -(१) शुश्रूषा (जिज्ञासा) (२) श्रवण (३) ग्रहण (४) धारणा (५) विज्ञान (६) ऊहा (७) अपोहा और (८) तत्त्वाभिनिवेश ।
-जैनाचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. २४६ ३. अजीर्णे भोजनत्यागी।
-योगशास्त्र ११५२ ४. काले भोक्ता च साम्यतः ।
-योगशास्त्र ११५२
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