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जैन दृष्टि सम्मत – व्यावहारिक नीति के सोपान | २४७
(६) सदाचारी व्यक्तियों की संगति
संसार में विभिन्न प्रवृत्तियों के मानव हैं । कुछ सदाचारी हैं तो दुराचारी भी बहुत मिलते हैं । यह कहना अधिक उचित होगा कि सदाचारियों की अपेक्षा दुराचारियों की संख्या अधिक है । किन्तु मार्गानुसारी को सदा सत्पुरुषों की संगति करनी चाहिए ।
भगवान महावीर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अज्ञानी व्यक्तियों की संगति नहीं करनी चाहिए क्योंकि उससे वैर व विवाद बढ़ता है ।" इसीलिए आचार्य हेमचन्द्र ने सज्जनों की संगति करने की प्रेरणा दी है ।
क्योंकि संगति का प्रभाव बहुत गहरा पड़ता है इसीलिए लोकोक्ति है - जैसी संगत, वैसी रंगत । इसी बात को ध्यान में रखते हुए तथागत बुद्ध ने हीन चरित्र वालों की संगति का निषेध किया है ।
संगति का मानव के व्यावहारिक और नैतिक जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है | जैसी उसकी संगति होती है, उसी के अनुसार लोग उसे समझते हैं । एक पाश्चात्य विचारक ने स्पष्ट कहा है- तुम किसी व्यक्ति के बारे में जानना चाहते हो कि वह कैसा है— दुराचारी या सदाचारी; तो यह देखो कि वह कैसे लोगों की संगति करता है । 1
संगति का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी असंदिग्ध है । सत्संगति से दुराचारी भी सदाचारी बन जाते हैं और कुसंगति से सज्जन पुरुष भी कुमार्ग की ओर गति कर सकते हैं । बालक तो संगति से अत्यधिक प्रभावित होते है, उनकी तो जीवनधारा ही बदल जाती है ।
इन्हीं सब बातों का विचार करके मार्गानुसारी मानव को सदा सज्जन पुरुषों की संगति करनी चाहिए ।
९. अलं बालस्स संगण, वरं वड्ढइ अप्पणो ।
२. कृतसंग सदाचारः ।
३. ( क ) अंगुत्तर निकाय ३ | ३ | ३
(ख) जातक २२/५ ४ १ | ४३६
If
you want to know about a man, whether he is good or bad,
watch his company.
- Ethics in Practice.
४.
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- आचारांग सूत्र
- योगशास्त्र १।५०
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