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नैतिक आरोहण का प्रथम चरण | २३७ और यह स्वच्छन्द सहवास के कारण एक दूसरे को लगता है, छूत-रोग के समान फैलता है। इसी भाव को प्रगट करते हुए हिन्दी के एक दोहे में कहा गया है
पर-नारी पैनी छुरी, तीन ठौर ते खाय । धन नाशै जोवन हरै, मरे नरक ले जाय ।।
परस्त्रीसेवन के कारण आधुनिक समाजशास्त्रियों ने परस्त्रीसेवन पाप के द्रुत गति से फैलने के १२ कारण बताए हैं-(१) क्षणिक आवेश (२) अज्ञानता (३) अश्लील और विकृत साहित्य (४) कुसंसर्ग (५) आर्थिक तंगी (६) धार्मिक अन्धविश्वास (७) सहशिक्षा (८) अश्लील चलचित्र (6) बाल विवाह, अनमेल विवाह, वृद्धविवाह (१०) नशीली वस्तुओं का सेवन (११) एकान्तवास और (१२) नई नई स्त्रियों के साथ सम्बन्ध बनाने की अदम्य इच्छा। .
यद्यपि यह सभी कारण परस्त्रीसेवन के लिए उत्तरदायी हैं, किन्तु इनमें पहला तथा अन्तिम कारण विशेष उत्तरदायी माने जाते हैं।
परस्त्रीगमन के साथ ही पर-पुरुषगमन भी सन्निहित है । दोनों का ही जोड़ा है । यदि स्त्री पर-पुरुषगमन न करे तो पुरुष परस्त्रीसेवन कर ही नहीं सकता। इसलिए पुरुष के लिए परस्त्रीसेवन व्यसन जितना त्याज्यं है, उतना ही स्त्री के लिए पर-पुरुषगमन भी । क्योंकि जितना पाप, अनाचार, अनैतिकता परस्त्रीसेवन से होता है उतना ही पर-पुरुषसेवन से भी होता है ।
वास्तव में पुरुष के लिए परस्त्री और स्त्री के लिए पर-पुरुष विष के समान है। ऐसा विष जो सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक सभी दृष्टियों से हानिकारक है, मानव को बरबाद कर देता है।
नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण से परस्त्रीगमन घोर अनैतिकता है। यह पुरुष को राक्षस की कोटि में पहुँचा देता है तो स्त्री को भी राक्षसी के स्तर तक पतित कर देता है। ऐसे पुरुषों तथा स्त्रियों में नैतिकता की गंध भी नहीं होती, कर्तव्य का उन्हें भान भी नहीं रहता, सिर्फ काम और स्वार्थपूर्ति की लालसा ही उनके मन-मस्तिष्क में हर समय समाई रहती है। वे अवैध पापाचार करके परिवार एवं समाज का वातावरण विषाक्त बनाते हैं तथा संपूर्ण मानव समाज में अनैतिकता का ही प्रसार करते हैं ।
उपसंहार जूआ, मांसाहार, मद्यपान, वेश्यागमन, शिकार, चोरी और परस्त्री
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