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२३६ / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
करने वाला कहा है । तथा अन्य मनीषियों ने भी निन्दा की है ।
सामाजिक तथा नैतिक दृष्टि से परस्त्री-गमन घोर अनैतिकता तथा सामाजिक अपराध है। इससे परिवार टूट जाते हैं । पर-स्त्री सेवन के दोष और हानियां
सूत्रकृतांग सूत्र में बताया गया है कि पर-स्त्रीगामी के (समाज एवं राज द्वारा) हाथ-पैर काट दिये जाते हैं, उसकी चमड़ी उधेड़ दी जाती है, उसे जलाया जाता है और जले पर नमक छिड़का जाता है।
__ यद्यपि प्राचीन युग के समान इतना कठोर दण्ड आज नहीं दिया जाता तो भी स-परिश्रम कारावास की सजा तो दी ही जाती है।
___ यह तो राजकीय दण्ड है । इसके अतिरिक्त सामाजिक दृष्टि से भी पर-स्त्रीगामो को सर्वत्र प्रतारणा, धिक्कार और तिरस्कार ही प्राप्त होते. हैं। अब भी पर-स्त्रीगामियों को काला मुंह करके सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की घटनाएँ समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिल जाती हैं ।
पस्त्रीगमन के दोष से पूरुष अविश्वसनीय हो जाता है, कोई भी उस पर विश्वास नहीं करता, अपने घर में नही आने देता। यहां तक कि उस की स्वयं की स्त्री भी उस पर विश्वास नहीं करती। अपने ही बच्चों की दृष्टि में वह सन्दिग्ध हो जाता है और उनका भी चरित्र पतित हो जाता है । पूरे परिवार का ही सामाजिक तिरस्कार होता है।
___ धन और बल की हानि तो होती ही है, लेकिन सबसे बड़ी हानि स्वास्थ्य की होती है। अधिक और चाहे जिस स्त्री के साथ कामसेवन का परिणाम शरीर का सत्व निचुड़ जाने के रूप में सामने आता है, शरीर की रोग निरोधक क्षमता अल्प से अल्पतर होती हुई समाप्त हो जाती है । आज जो पश्चिमी देशों में ऐड्स (Accumulation of Immunity Deficiency) नाम का रोग फैला हुआ है, उसका लक्षण ही शरीर की रोग निरोधक क्षमता का नष्ट हो जाना है। इसमें कोई औषधि काम ही नहीं करती।
१. (क) परदाराभिशात्त नान्यत् पापतरं महत् ।
-वाल्मीकि रामायण ३३८।३० (ख) अनार्यः परदार व्यवहारः ।
-अभिज्ञान शाकुन्तलम् (ग) नहीदृशमनायुष्यं लोके किंचित् दृश्यते ।
यादृशं पुरुषस्येह परदारोपसेवनम् ॥ -मनुस्मृति ४।१३४
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