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नैतिक आरोहण का प्रथम चरण | २३३
चोरी के ही विभिन्न रूप हैं। वस्तुओं, दस्तावेजों, महत्वपूर्ण संधिपत्रों आदि को विभिन्न देशों में पहुँचा देना, अथवा उन देशों से छिपे रूप में अपने यहाँ मँगवा लेना तस्करी है। किसी वस्तु के क्रय-विक्रय में खरीददार को बताये बिना धन ले लेना भी चोरी है। __आज चोरी का मीठा नाम-रिश्वत, कमीशन या सुविधाशुल्क हो गया है।
प्रश्नव्याकरण सूत्र में चोरी के ३० सार्थक नाम गिनाये हैं, उनमें दूसरों के धन से अनुचित लाभ उठाना, पराये धन में आसक्ति रखना, खुशामद करके दूसरों से धन ले लेना आदि भी सम्मिलित हैं। इसे अनार्य व्यवहार और प्रियजनों में भेद उत्पन्न करने वाला बताया है। इससे स्पष्ट है कि चोरी का क्षेत्र कितना व्यापक है।
सभ्यता के विकास के साथ-साथ चोरियों के नये-नये रूप सामने आ रहे हैं । सफेदपोश और सभ्य-शिक्षित जन भी चोरी के धंधे में लगे हैं।
वस्तुओं में मिलावट, सैम्पिल में बढ़िया माल दिखाकर घटिया सप्लाई का देना, असली के बजाय नकली (duplicate) वस्तु दे देना, सरकारी टैक्स बचाने के लिए बही खातों (acconut books) में हेरफेर कर देना आदि सभ्य और सफेदपोश चोरियाँ हैं। ब्लैक (black) काला धन्धा, वास्तविक उचित मूल्य से अधिक मूल्य लेना, कृत्रिम अभाव (artificial shortage) दिखाकर कीमतों में बेतहाशा वृद्धि कर देना तो अब सामान्य बात ही हो गई है। अस्पष्ट किन्तु आकर्षक भाषा में विज्ञापन छपवाकर लोगों को प्रभावित करके उनको ठगने का नया तरीका चल पड़ा है।
तरीके कितने ही हों, नये अथवा पुराने किन्तु वास्तविक दृष्टि से विचार करने पर यह चोरी के ही विभिन्न रूप हैं जो हर युग में बदलते रहे हैं और नये से नये अस्तित्व में आते रहे हैं।
__चोरी के कारण आधुनिक विद्वानों ने चोरी के प्रमुख ६ कारण बताये हैं-(१) बेकारी, (२) निर्धनता, (३) फिजूलखर्ची, (४) यशकीर्ति की लालसा, (५) स्वभाव या कुसंस्कार और (६) अराजकता ।
१ प्रश्नव्याकरण सूत्र, अदत्तादान आश्रव द्वार, सूत्र १०
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