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________________ नैतिक आरोहण का प्रथम चरक | २३१ में भी इनका सबसे अधिक प्रयोग होता है । वेश्या समाज के लिए कलंक है और वेश्यागमन अनेक प्रकार की अनैतिकताओं को जन्म देता है । हत्या आदि अधिकांश अपराध वहीं सबसे अधिक होते हैं। वेश्यागामी व्यक्ति, चूंकि उसे वेश्या को प्रसन्न करने के लिए धन की अनिवार्य आवश्यकता होती है, ठगी, जालसाजी आदि अनैतिक कार्यों से धनोपार्जन करता है, चोरी भी करता है और इस प्रकार उसका जीवन अनैतिक बन जाता है, साथ ही वह समाज में भी अनैतिकता ही फैलाता है। वेश्या के सम्पर्क से वेश्यागामी व्यक्ति को कई प्रकार के यौन रोग लग जाते हैं, वे ही रोग उसकी संतानों में आते हैं और इस प्रकार उसका वंश ही रोगी हो जाता है, रोग के कष्ट से वह दुखी और पीड़ित होता है। आज के संसार में सबसे भयावह प्राणघाती रोग ‘एड्स' का सबसे मुख्य कारण वेश्यागमन ही है। इन्ही सब कारणों से वेश्यागमन पाप है, अनैतिक मार्ग है । शिकार क्रूरता का जघन्यतम रूप शिकार है । यह इन्सान के भीतर छिपा जंगलीपन है । यह मानव की क्रूरतम वृत्ति का विज्ञापन है । इसमें उसकी कठोरता ही उजागर होती है। - सामान्यतः यह समझा जाता है कि शिकारी वीर पुरुष होता है, वह सिंह आदि पशुओं का शिकार करके अपनी वीरता प्रदर्शित करता है। किन्तु पाश्चात्य विचारक सिनेका कहता है समस्त क्रूरताएं और कठोरताएँ दुर्बलता में से जन्म लेती हैं । फिर शिकारी वीर होता ही कहाँ है, वह तो कायर होता है। वह छिपकर पशुं पर अपने शस्त्र-शस्त्रों से घात करता है, बन्दूक से गोली दागता है। जो छिपकर घात करे वह कायर ही तो होता है। १ अभी कुछ समय पूर्व ही समाचार पत्रों में पढ़ा कि लन्दन में १३ वर्ष की लड़कियाँ भी वेश्यावृत्ति करने लगी हैं, वे स्कूल में पढ़ती हैं और फिर अड्डों पर जाकर वेश्यावृत्ति करती है, क्या यह सभ्यता व संस्कृति के घोर पतन का मार्ग नहीं है ? २ All cruelty springs from hard-heartedness and weakness. -Seneca Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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