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२३० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
की दृष्टि से त्याज्य है । मद्यपी के जीवन में कभी नैतिकता का प्रवेश नहीं हो सकता, चाहे वह कितना ही बड़ा विद्वान हो, उच्चकोटि की शिक्षाप्राप्त हो, सामाजिक अथवा राजनीतिक नेता हो ।
नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र तथा आचारशास्त्र सभी दृष्टियों से मदिरा व्यसन सर्वथा अनैतिक है, पाप है, दुराचरण है । यह ऐसा दीवालिया बैंक है, जहाँ से बरबादी ही प्राप्त होती है। इससे जीवन सन्निपात के रोगी के समान हो जाता है, उसकी सारी प्रवृत्तियां अनर्गल होती हैं, वह अनुचित बोलता है, पागलों जैसे प्रलाप करता है।
मद्यपी व्यक्ति को सभी ओर से तिरस्कार, दुत्कार ही प्राप्त होते हैं । वह अनैतिकता के गर्त में समा जाता है ।
वेश्यागमन वेश्या एक दीपशिखा के समान है, जिस पर पुरुष रूपी पतंगे मंडराते हैं और अपना धन, मान-मर्यादा आदि सब कुछ स्वाहा कर देते हैं और सभी प्रकार के साधन नष्ट हो जाने पर पंखरहित शलभ के समान भूमि पर गिर पड़ते हैं।
प्रेम नाम की वस्तु वेश्या के हृदय में होती ही नहीं। उसका मात्र ध्येय धन-दोहन है । इसके साथ ही पुरुष के बल-शक्ति-इज्जत आदि का शोषण भी करती है और फिर उसे चूसे हुए आम की तरह सड़कों के कचरे पर फेंक देती है।
यद्यपि वेश्याएँ अनेक दुर्गुणों की खान हैं फिर भी कुछ पाश्चात्य विचारक (सेंट एक्वीनस, बालजाक, शापेनहावर, लेकी आदि) उनका पक्ष लेते हुए कहते हैं-एक महल को जैसे स्वच्छ रखने के लिए नाली की जरूरत होती है, उसी प्रकार समाज को विशुद्ध रखने के लिए भी गणिकाओं (वेश्याओं) की जरूरत है।
किन्तु यह बहुत ही भ्रामक तर्क है। मोंटीकार्लो, जोजिया टाउन आदि नगर-जहाँ वेश्याओं के निवास हैं, वहीं सबसे अधिक अपराध होते हैं । बाल-अपराधों एवं अपराधी बालकों का जन्म वेश्यालयों के आसपास ही होता है। __यूरोप एवं एशिया आदि सभी देशों में वेश्यालय अनैतिकता व सामाजिक-आर्थिक अपराधों के अड्डे माने जाते हैं। तस्करी एवं जासूसी
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