________________
२२८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन पहुँचा देते हैं, यथार्थ जगत से उसका सम्बन्ध तोड़ देते हैं और उसकी चेतना किसी दूसरे लोक की सैर करने लगती है।
मदिरा तथा अन्य सभी नशीले पदार्थ मानवीय सद्गुणों को नष्ट कर देते हैं । सत्य का तो सत्यानाश हो ही जाता है; विवेक, ज्ञान, सत्य, शौच, दया, क्षमा आदि सभी सद्गुण आग की चिन्गारी से घास के ढेर के समान जलकर भस्म हो जाते हैं। बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है और क्रोध आदि अनेक संवेग तथा विभ्रम उत्पन्न हो जाते हैं, व्यक्ति पागलों का सा प्रलाप करता है।
एक पाश्चात्य विचारक ने कहा है- ज़ब मनुष्य मद्यपान करता है तो मदिरा के अन्दर जाने के साथ ही बुद्धि बाहर निकल जाती है । ___Sencea ने तो स्पष्ट ही कह दिया कि मद्यपान स्वेच्छया अपनाए हुए पागलपन के सिवाय कुछ नहीं है ।
शराब का सबसे बुरा असर मस्तिष्क और हृदय पर पड़ता है, शरीर तो जर्जरित हो ही जाता है ।
शास्त्रों में शराब के अनेक दुर्गुण और दोष बताए हैं, किन्तु इस
१. मद्यपस्य कुतः सत्यम् ?
-जीवनसुधार, पृ० ४० २. विवेकः संयमो ज्ञानं, सत्य शौचं दया क्षमा ।
मद्यात् प्रलीयते सर्वं, तृण्या वन्हिकणादिव ।। -योगशास्त्र ३/१६ ३. मद्यपानाद् मतिभ्र शो, नराणां जायते खलु । -जीवन सुधार पृ० ३१ ४. मद्यपाने कृते क्रोधो, मानं, लोभश्च जायते । मोहश्च मत्सरश्चैव दुष्टभाषणमेव च ॥
-मनुस्मृति ५. When drink enters, wisdom departs €. Drunkenness is nothing else, but a voluntary madness. ७. वैरूप्यं व्याधिपिण्डः स्वजन परिभव: कार्यकालातिपातो ।
विद्वषो ज्ञाननाशः स्मृतिमतिहरणं विप्रयोगश्च सद्भिः ।। पारुष्यं नीच सेवा कुल-बल-विलयो धर्मकामार्थहानिः । कष्टं वै षोडशैतेनिरुपचयकरा मद्यपानस्य दोषाः ।। --आत्मा को पतित करने वाले मद्यपान के १६ कष्टदायक दोष हैं(१) वैरूप्य (शरीर का बेडौल और कुरूप हो जाना) (२) व्याधिपिण्ड (प्रारीर का रोगों का घर हो जाना) (३) स्वजन परिभव-(परिवार में तिरस्कार)
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org