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नैतिक आरोहण का प्रथम चरण | २२७
गुणों और नैतिक प्रत्ययों का नाश करके मानव को अनैतिक बनाता है, उस के हृदय में कठोरता का वास हो जाता है, क्रूर बन जाता है, प्राणियों की रक्षा के स्थान पर उनका भक्षण करने लगता है । परिणामस्वरूप मानव श्रेष्ठता के आसन से गिरकर निकृष्ट बन जाता है; दुराचरण, हिंसा उसके जीवन के अंग बन जाते हैं । हृदय की क्रूरता उसे घोर अनैतिक तथा पति बना देती है, नैतिकता का नाम निशान भी नहीं रहता है ।
नीति में जिसे अनैतिकता कहा गया है, उसे ही धर्मशास्त्रों में पाप की संज्ञा दी गई है । 'पाप' का परिणाम पतन ही है, इसीलिए स्थानांग सूत्र' में मांसाहार का फल नरक गमन बताया है ।
मांसाहारी मानव अपराधी होता है । अपराधी, उन पशुओं के प्रति जिनका हनन और भक्षण वह करता है । चाहे, यह अपराध-बोध उसे न हो किन्तु अपराध तो अपना काम करता ही है, उसकी अपराधिनी आत्मा पतित होती है, उसकी प्रवृत्तियाँ निम्न से निम्नतम स्तर तक गिरती हुईं पाप पंक में निमग्न हो जाती हैं ।
नैतिकता की दृष्टि से यह मानव के घोर पतन की - घोर अनैतिकता की स्थिति है । इसीलिए मांसाहार अनैतिक है, अपवित्र है और मानवता की दृष्टि से घृणास्पद है ।
इसी कारण इसे सभी विवेकीजनों ने त्याज्य बताया है ।
मद्यपान
वे सभी द्रव्य ( पेय पदार्थ ) जो बुद्धि को लुप्त कर देते हैं, ढक देते हैं, मद्य कहलाते हैं ।" इनमें मदिरा ( wine ) तो प्रमुख है ही किन्तु भाँग, गांजा, अफीम, चरस, ताड़ी आदि की भी गणना मद अथवा नशीले पदार्थों में की जाती है । आजकल तो और भी नशीले पदार्थ प्रचलित हो गये हैं, जैसेहैरोइन, ब्राउन सुगर, कोकीन आदि ।
इन सभी पदार्थों की यह विशेषता है कि मानव को कल्पना लोक में
१. चउहि ठाणेहिं जीवा नेरइयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहामहारम्भयाते, महापरिग्गहयाते, पंचिदियवहेणं, कुणिमाहारेण ।
२. बुद्धि लुम्पति यद्द्रव्यं मदकारि तदुच्यते ।
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- स्थानांग, स्थान ४
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