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________________ २२६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन जूआ छत की बीमारी के समान बड़ी तेजी से फैलता है और यहाँ तक कि संपूर्ण देशवासियों को भी अपनी गिरफ्त में ले लेता है, उनका नैतिक पतन कर देता है। जुआ खेलने की आदत व्यक्ति को आलसी, बिना श्रम किये रातोंरात लखपति बनने की बुरी भावना जगाती है । जुए का धन व्यक्ति को शराब, मांसाहार, पर-स्त्रीगमन, आदि बुरी आदतों की तरफ ढकेलता है। इसीलिए यथार्थ दृष्टि प्राप्त होने के बाद नैतिकता की ओर कदम बढ़ाता हुआ मानव सर्वप्रथम चूत को तिलांजलि देकर अपने जीवन को निर्दोष बनाता है। मांसाहार मांसाहार भी चूत के समान ही एक व्यसन है। व्यसनों के क्रम में यह दूसरा व्यसन है। मांस पंचेन्द्रिय प्राणियों के वध से उत्पन्न होता है। यह मानव का भोजन नहीं है। मानव-शरीर की रचना शाकाहार के लिए उपयुक्त है। शाकाहार ही मानव को स्फूर्ति, बल, वीर्य आदि प्रदान करता है और उसे प्रत्येक कार्य करने में सक्षम बनाए रखता है। शाकाहार से बुद्धि, मन और शरीर क्रियाशील बने रहते हैं । मन-मस्तिष्क में उत्तेजना व्याप्त नहीं होती, उसका जीवन सहज, सरल व नैतिक रहता है। जबकि मांसाहार अनैतिक है, अनैतिक इसलिए कि यह वैर परम्परा को बढ़ाने वाला है । आचार्य मनु ने मांस शब्द का अर्थ बताते हुए कहा हैमांस का अर्थ ही यह है कि जिसका मैं मांस खा रहा हूँ, वह अगले जन्म में मुझे खाएगा। मां और स इस प्रकार मांस शब्द को अलग अलग लिखने से इसका अर्थ होता है वह (स) मुझे (मां) खायेगा। इस प्रकार मांसाहार अनेक जन्मों तक वैर परम्परा बढ़ाता है । ___शत्रुता अथवा वैर अनैतिक है, इससे अनैतिकता का ही प्रसार होता है । इसके अतिरिक्त यह दया, प्राणिरक्षा, अहिंसा भावना आदि सभी मानवीय १ मां स भक्षयिताऽमुत्र, यस्य मांसमिहाम्यहम् । एतन्मांसस्य मांसत्व, प्रवदन्ति मनीषिणः । -मनुस्मृति ५।५५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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