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नैतिक आरोहण का प्रथम चरण | २२५
अनैतिक कृत्य है, ऋग्वेद तथा सूत्रकृतांगसूत्र में इसे त्याज्य बताया है। एक पाश्चात्य चिन्तक ने भी इसे लोभ का पुत्र और फिजूलखर्ची का जनक जननी कहा है।
जूए से धन का नाश होता है । |
जूआ अनैतिक इसलिए है कि सर्वप्रथम यह जूआ खेलने वाले व्यक्ति की मानसिक शांति को भंग कर देता है, जुआरी का मन-मस्तिष्क सदा अशान्त, उद्विग्न और चिन्तामग्न रहता है। उसके अपने परिवारीजनों, स्वजनों-सभी के साथ सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं । धन की लालसा में वह नैतिकता को भूल जाता है। ___ जुआरी लोकनिंद्य कार्य करने से भी नहीं चूकता । वह चोरी जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं हिचकता । उसके हृदय की कोमल भावनाएँ विनष्ट हो जाती हैं। माता-पिता, पत्नी-पुत्र आदि के प्रति क्या कर्तव्य हैं वे विस्मृति के गर्भ में चले जाते हैं।
कर्तव्य-अकर्तव्य, शुभ-अशुभ जितने भी नैतिक प्रत्यय हैं, उनकी ओर वह ध्यान ही नहीं देता, अपने शब्दों की वह कीमत ही नहीं समझता, उसे सिर्फ एक धुन रहती है, वह है द्य त-क्रीड़ा की। उस समय वह इतना वह विवेकान्ध हो जाता है कि पत्नी को भी दाँव पर लगा देता है ।
- नैतिक, सामाजिक, मानवीय, पारिवारिक सभी प्रकार से जुआरी का पतन हो जाता है। उसके शतमुखी नैतिक पतन को क्षत्र चूड़ामणि काव्य में चित्रित करते हुए कहा गया है
व्यसनों में जिनका चित्त आसक्त है, उनका कौन-सा ऐसा गुण है जिसे व्यसन नष्ट नहीं कर डालता ? उनमें न विद्वत्ता रह पाती है, न मनुष्यता; न कुलीनता ही शेष रह पाती है, न सत्यवाणी ही।
१. अक्षर्मादिव्यः ।
-ऋग्वेद १०/३४/१३ २. अट्ठावए न सिक्खेज्ज्जा ।
-~-सूत्रकृतांग ९/१० ३. Gambling is the child of avarice, but the parent of prodigality. ४. जूए पसत्तस्स धणस्स नासो।
-गौतम कुलक ५. व्यसनासक्तचित्तानां, गुण. को वा न नश्यति ।
न वैदुष्यं न मानुष्यं, नाभिजात्यं न सत्यवाक् ।।
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