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नैतिक आरोहण का प्रथम चरण | २२३
व्यसन का सीधा अर्थ भी यही है। यह शब्द दो शब्दों के मेल से बना है-वि+असन । असन का अर्थ भोजन है। पूरे व्यसन शब्द का अर्थ हुआ-विकृत भोजन, विकृत वस्तुओं, आदतों को ग्रहण करना, उनमें लिप्त हो जाना।
प्रसिद्ध पाश्चात्य विचारक ने व्यसन को बुरी आदतों में लिप्त हो जाना (Addiction to evil habits) कहा है और इसके लिए debauehery1 शब्द दिया है। इस शब्द का वाच्यार्थ है-ऐसी आदतें जो व्यक्ति को शारीरिक रूप में अक्षम बनाती हैं, मानसिक कमजोरी लाती हैं, धन की हानि करती है और सद्गुणों का विनाश करती हैं।
१. William Geddie : Midh-twentith Century Version. p. 269 २. (क) जूअं मज्ज मंसं वेसा पारद्धि चोर परयार। दुग्गइ गमणस्सेदाणि हेउभूदाणि पावाणि ॥
-वसुनन्दि श्रावकाचार में सप्तव्यसन पर प्रथम श्लोक (ख) चूतं च मांसं च सुरा च.वेश्या, पापद्धि चौर्ये परदारसेवा ।
एतानि सप्त व्यसनानि लोके, पापाधिके पुसि सदा भवन्ति । (ग) वैदिक परम्परा में अठारह प्रकार के व्यसन माने गये हैं, जिनमें से १०
कामज हैं और ८ क्रोधजन्य हैं। कामज व्यसन हैं-(१) मृगया (शिकार), (२) अक्ष (जूआ) (३) दिवास्वप्न-संभव कल्पनाओं में उलझे (डूब) रहना (४) परनिन्दा (५) परस्त्री सेवन (६) मद (७) नृत्यसभा (८) गीतसभा (8) वाद्य की महफिल (१०) व्यर्थ भटकना। क्रोधज व्यसन हैं- (१) पैशुन्य (चुगली) (२) अतिसाहस (३) द्रोह (४) ईर्ष्या (५) असूया (६) अर्थ दोष (6) वाणी से दण्ड और (८) कठोर वचन (परुषतः)
दशकाम समुत्थानि तथाऽष्टौ क्रोधजानि च । व्यसनानि दुरन्तानि यत्नेन परिवर्जयेत् ॥ मगया क्षो दिवास्वप्न: परिवादः स्त्रियो मदः । तौर्यत्रिकं वृथाऽट्या च कामजो दशको गणः ॥ पैशुन्यं साहसं द्रोहं ईर्ष्याऽसूयाऽर्थदूषणम् । वाग्दण्डजं च पारुष्यं क्रोधजोऽपि गणोऽष्टकः ॥
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