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________________ व्यसनमुक्त जीवन संस्कृत की एक प्रश्नोत्तरी में जीवन का रहस्य बताया गया हैकि जीवन ? (जीवन क्या है ? ) दोषविवजितं यत् ( दोषरहित - व्यसनमुक्त जीवन ही वास्तव में जीवन है ।) यथार्थ दृष्टि ( सम्यग्दर्शन) और यथार्थ बोध (सम्यग्ज्ञान ) प्राप्त होते ही मानव की जीवन-शैली परिवर्तित हो जाती है । उसे अपनी जीवनचादर पर लगे दोष स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं । उन दोषों से वह भविष्य के लिए दूर होना चाहता है और पिछले धब्बों को धोने के लिए प्रस्तुत हो जाता है । दोषों को दूर करके जीवन को निर्दोष बनाने के लिए वह जो पहला चरण बढ़ाता है, वह है - व्यसनों का त्याग । व्यसन क्या है ? - ३ नैतिक आरोहण का प्रथम चरण 'व्यसन' शब्द संस्कृत भाषा का है, जिसका अर्थ है कष्ट । जिन प्रवृत्तियों का परिणाम कष्टप्रद हो, उन्हें व्यसन कहा गया है । एक संस्कृत कवि ने व्यसन को मृत्यु से भी अधिक कष्टप्रद कहा है । वह कहता है - व्यसनी नीचे गिरता जाता है, उसका जीवन पतित होता जाता है, जबकि अव्यसनी का जीवन ऊंचा उठता है, मृत्यु के उपरान्त भी व्यसनी की अधोगति होती है जबकि निर्व्यसनी को उच्चगति – स्वर्गादि की प्राप्ति होती है । 1 १. व्यसनस्य मृत्योश्च व्यसनं कष्टमुच्यते । व्यसन्यधोऽधो व्रजति, स्वर्यात्यव्यसनी मृतः । [ २२२ ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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