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सम्यग्दर्शन का स्वरूप और नैतिक जीवन पर उसका प्रभाव ! २२१
बहुत से पढ़े लिखे मानव भी यथार्थ दृष्टिकोण वाले नहीं होते, नैतिकता अनैतिकता का विभेद करने में सक्षम नहीं हो पाते ।
सम्यक्त्व यथार्थश्रद्धा द्वारा सत्य दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे ज्ञान भी यथार्थग्राही बन जाता है ।
इसका परिणाम यह होता है कि ज्ञान पर पड़ा अयथार्थता का आवरण हट जाने से वह अपने विचारों तथा आचरण के दोषों को समझने, उन का यथार्थ विवेचन विश्लेषण करने में सक्षम हो जाता है । स्वयं के सुधार की इच्छा जागृत होने लगती है।
इस सुधार-इच्छा का फल आध्यात्मिक तथा नैतिक प्रगति के रूप में सामने आता है ।व्यक्ति अधिक से अधिक नैतिकता की ओर झकता जाता है और अपने आचरण में अपेक्षित सुधार लाकर नैतिक जीवन जीने के लिए प्रयत्नशील होता है।
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