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________________ १७८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन विषय के रूप में आचरण से संबंध रखता है ।। (३) कार्यपरकता-नैतिक निर्णय करते समय किसी नैतिक मान-दण्ड का आधार लेकर किसी कार्य विशेष के औचित्य-अनौचित्य का निर्णय किया जाता है। मैकेंजी के शब्दों में इसका अभिप्राय यह है-'किसी भी कार्य के अच्छ-बुरे होने का निर्णय करने वाला एक दृष्टिकोण ।” यह दृष्टिकोण ही नैतिक निर्णय का मान-दण्ड है। इस प्रकार मूल्यात्मकता, नियामकता और कार्यपरकता नैतिक निर्णय की वे विशेषताएँ हैं, जो इसे अन्य प्रकार के निर्णयों से भिन्न स्वरूप प्रदान करती हैं और एक विशिष्ट उपलब्धि देती हैं । निर्णय-कर्ता नैतिक निर्णय का इतना विवेचन और विश्लेषण हो चुकने पर एक प्रमुख प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है कि इस नैतिक निर्णय को करने वाला कौन है ? विभिन्न नीतिशास्त्रियों ने इसके उत्तर विभिन्न प्रकार से दिये हैं। शेफ्ट्स बरी इसे नैतिक समीक्षक (Moral Connoisseur) कहता है, आदम स्मिथ इसे तटस्थ द्रष्टा (Impartial Spectator) नाम देता है। - संत पाल इसे ईसा (Christ) कहता है और महात्मा गांधी ने इसकी अभिधा राम दी है। समस्त धार्मिक संतहृदय व्यक्तियों ने इसे अपने-अपने इष्ट देवों के नाम से पुकारा है। आदम स्मिथ के शब्दों में-जब मैं स्वयं अपने आचरण की जांच करने की चेष्टा करता हैं तो मानो अपने को दो व्यक्तियों में विभाजित कर देता हूँ । परीक्षक और न्यायाधीश के रूप में मैं उस दूसरे व्यक्ति से भिन्न 1 It is concerned with the judgment upon conduct, the judgment that such and such conduct is right or wrong... It deals with the conduct as the subject of the judicial judgment.... -Muirhead, J. H. : The Elements of Ethics, p. 19 2 The point of view from which an action is judged to be good or bad. -Mckenzie, J. S. : A Manual of Ethics, p. 112 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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