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नैतिक निर्णय | १७६
का प्रतिनिधित्व करता हूँ जिसके आचरण की जांच हो रही है । प्रथम द्रष्टा है, दूसरा कर्ता है । प्रथम निर्णायक है, दूसरा निर्णीत व्यक्ति है ।।.. .
___ यहाँ यही विचार करना है कि वह कौन सी शक्ति है जिसे शेफ्टसबरी ने 'नैतिक समीक्षक', 'आदम स्मिथ' ने 'तटस्थ द्रष्टा' कहा और अन्य संतों ने अपना-अपना इष्टदेव बताया।
सामान्य भाषा में इसे अन्तःकरण कहा जा सकता है और विशेष रूप में अन्तरात्मा। अन्तरात्मा के सांख्यदर्शन में चार भेद माने गये हैंमन, चित्त, बुद्धि और अहंकार । इन सबका सम्मिलित रूप ही अन्तःकरण है।
नीतिशास्त्र का दष्टिकोण भी लगभग ऐसा ही है। वह संकल्प, इच्छा. बुद्धि, संवेग, आवेग आदि का अधिष्ठान आत्मा को स्वीकार करता है । इन सब पर आत्मा की एक विशिष्ट शक्ति शासन करती है, उसका नाम है विवेक (Reason) । मानव का विवेक ही नैतिक निर्णय का कार्यकर्ता है।
जैनदर्शन के अनुसार 'विवेगे धम्ममाहिए-विवेक ही धर्म का निर्णायक है। इसे ही अन्तःप्रज्ञा, पन्ना'कहा गया है, इसे ही 'अप्पा-आया
आत्मा' कहा गया है। . नैतिक निर्णय के विवेक की अवधारणा जैन-दर्शन को भी स्वीकार्य है । उसके अनुसार भी निर्णय विवेक के आधार पर ही होना चाहिए ।
और विवेकपूर्ण निर्णय वही है जिसमें क्रोध, मान, माया, लोभ, वासना, स्वार्थ आदि आवेगों की गन्ध भी न हो, सामाजिक रूढ़ियों के परिपालन के लिए न्याय का गला न घोंटा जाय, व्यक्ति को दुखी न किया जाय और उसे पतन के लिए विवश न किया जाय ।
हानिकारक प्रथाओं को तोड़ना प्राचीन काल में एक प्रथा प्रचलित थी उत्तराधिकारीविहीन सम्पत्ति का स्वामी राजा होता था और स्त्री का (चाहे वह पत्नी, माँ, अथवा बहन कोई भी क्यों न हो) पुरुष (पति, पिता, भाई ) की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं माना जाता था। इस प्रथा का आधार राजाओं की स्वार्थभावना थी
१. उद्धृत, डा. रामनाथ शर्मा : नीतिशास्त्र की रूपरेखा, पृ० ६६
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