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१७२ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन इच्छाओं पर नियन्त्रण रख सकता है और न ही उसके लिए यह सम्भव हो पाता है कि वह अपनी इच्छाओं को अच्छी दिशा में मोड़ सके।।
इसके विपरीत मानव में अपनी इच्छाओं; अभिलाषाओं पर नियंत्रण करने तथा उचित दिशा में मोड़ने की शक्ति है। इसी शक्ति का नाम संकल्प शक्ति है। 'संकल्प शक्ति का कार्य निर्देशन देना और नियन्त्रण करना है, यह केवल सर्जना या रचना का कार्य नहीं करती।' जेम्स सेथ के इन शब्दों का अभिप्राय यह है कि संकल्प मानव के सुनिश्चित भविष्य का मार्ग-निर्देशन करता है तथा लक्ष्य की ओर बढ़ने में सहायक बनता है।
चरित्र संकल्प से प्रभावित होता है । अधिक स्पष्ट शब्दों में, जैसा संकल्प होता है, वेसा ही चरित्र बनता है। इसी तथ्य को नोवेलिस के यह शब्द अभिव्यक्त कर रहे हैं- 'चरित्र एक पूर्णतया निर्मित संकल्प है।'
___ श्री बार्नन जोन्स चरित्र को आचरण से सम्बन्धित मानकर कहते हैं-'चरित्र आचरण को प्रगतिशील बनाने वाला है।'
वास्तव में चरित्र एक बहुत ही विस्तृत आयाम वाला शब्द है । यह मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्व से सम्बन्धित है। चरित्र-निर्माण समाजशास्त्र, मनोविज्ञान और नीतिशास्त्र की प्रमुख पहेली रही है। प्रत्येक शिक्षक, समाज सुधारक, राजनीतिक और सामाजिक नेता चरित्र निर्माण के लिए पुकार लगाते रहते हैं।
___ अब देखें, किसी व्यक्ति का चरित्र निर्माण कैसे होता है ? कौनकौन से तत्व इसके निर्माण में साधक और बाधक होते हैं ?
___ चरित्र निर्माण का प्रधान तत्व है-आत्म-गौरव का स्थायीभाव (Self regarding sentiment) । मानव में आत्म-गौरव की भावना सबसे प्रबल होती है। सुख-दुःख, दण्ड, पुरस्कार, निन्दा-प्रशंसा आदि की स्थितियों को पार करने के बाद, मानव अपने आत्म-गौरव का एक स्थायीभाव निर्मित कर लेता है । इसमें सामाजिकता, देश-काल की परिस्थितियाँ, आदर्श, समायोजन आदि का भी विशेष हाथ होता है। धर्म एवं नैतिकता की भावना का भी सदाचरण में महत्व है और सदाचरण से ही नैतिक चरित्र का निर्माण होता है।
वास्तव में देखा जाय तो चरित्र मानसिक (Mental) संगठन की एक सुगठित क्रिया है अथवा चरित्र निर्माण एक सुगठित मानसिक (और व्यावहारिक भी) प्रक्रिया है।
आचरण चरित्र का व्यावहारिक पक्ष है। यह सभी को दिखाई देने वाला प्रगट बाह्य रूप है। मानव जो कुछ व्यवहार रूप में करता है, वह
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