SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन (३) इच्छाओं के परिणामों का नैतिक विश्लेषण (Moral analysis of the effects of desires) (४) नैतिक निर्णय Moral Judgment) (५) चरित्र एवं आचरण (Character and Conduct) (६) अभिप्रेरणा तथा अभिप्राय (Motivation and intention) (१) विभिन्न इच्छाओं की चेतना-इच्छा, जैसा कि संज्ञाओं के वर्णन से स्पष्ट है, प्राणी मात्र को होती है। किन्तु पेड़-पौधों की इच्छा अव्यक्त है । ज्यों-ज्यों चेतना का स्तर विकसित होता जाता है, इच्छा भी व्यक्त होती जाती है । इस क्रम से मानव सर्वाधिक विकसित चेतना वाला प्राणी है अतः उसकी इच्छाएँ व्यक्त भी होती हैं और साथ ही विभिन्न प्रकार की भी होती हैं। इच्छा, वास्तव में प्राणी की शारीरिक, मानसिक आदि किसी भी प्रकार के अभाव की अभिव्यक्ति है। प्राणी उस अभाव की कमी को पूरा करना चाहता है, इसके लिए वह प्रयास करता है और ज्यों ही वह कमी पूरी हुई कि उस इच्छा की संतुष्टि हो जाती है । इसी को इच्छाओं का पूर्ण अथवा सन्तुष्ट होना कहा जाता है । इच्छापूर्ति से प्राणी को एक प्रकार के सुख की अनुभुति होती है । इच्छाओं की और इच्छातृप्ति से सुख की अनुभूति होती है और वह इच्छाओं की चेतना कही जाती है। . (२) परस्पर विरोधी इच्छाओं का संघर्ष-अन्य सभी प्राणियों की इच्छाएँ सामान्य होती हैं, सिर्फ आहार, भय, मैन, परिग्रह तक ही सीमित रहती है (जैसा कि संज्ञाओं के प्रथम वर्गीकरण में बताया गया है)। भूख लगी-आहार की इच्छा हुई, जैसा भी भोज्य पदार्थ मिला, उदरस्थ कर लिया; भय का कारण उत्पन्न हुआ, भाग गये, मैथुन की इच्छा हुई, पूरी कर ली। आदि.... पशु जगत तक यही क्रम है; किन्तु मानव की इच्छाएँ विभिन्न प्रकार की और असीमित है । इसे भोजन के लिए भी स्वादिष्ट भोजन की इच्छा होती है और स्वाद भोजन से ही वह तृप्त होती है। इसी प्रकार अन्य इच्छाओं के बारे में भी कहा जा सकता है। १. उत्तराध्ययन सूत्र ६/४८-इच्छा हु आगास समा अणंतिया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy