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________________ इन तीनों खण्ड तक नीति का विश्लेषणात्मक चरण है और इसके परिशिष्ट में संकलनात्मक चरण। इस चरण में नीति सूक्तियों का संचयन है। सूक्तियों के लिए आचार्य शुभचन्द्र ने ज्ञानार्णव में कहा है प्रबोधाय विवेकाय, हिताय प्रशमाय च । सम्यक् तत्त्वोपदेशाय, सतां सूक्तिः प्रवर्तते ।। -सोये हुए को जगाने के लिए, सत्य-असत्य के निर्णय के लिए, लोक-कल्याण के लिए और वैराग्य जागृति के लिए तथा सच्चे तत्व का उपदेश देने के लिए सत्पुरुषों द्वारा सूक्ति का प्रवर्तन/कथन होता है। सत्पुरुषों द्वारा कथित सूक्तियों का एक महार्णव ही है। संकलनकर्ता के लिए एक समस्या खड़ी हो जाती है। सभी सूक्तियों का अपना प्रभाव होता है, आकर्षण होता है। वे संकलनकर्ता से बोलती हुई जान पड़ती हैं हमें भी चुन लो, ठीक नव-कुसुम कलियों के समान, जिनके सम्मोहक आकर्षण से संकलनकर्ता अभिभूत हो जाता है । __ यह स्थिति वैसी ही होती है, जैसी संजीवनी बूटी लेते समय हनुमान जी के सामने आ गई थी। सभी बूटियाँ चमक उठी थीं। हनुमान जी असमंजस में पड़ गये, कुछ निर्णय न कर सके-किस बूटी को ले जाऊँ और किसको नहीं; आखिर हनुमान जी पर्वत खण्ड को ही उठा लाये । लेकिन सूक्ति संकलनकर्ता क्या करे ? सभी सूक्तियाँ 'सूक्त शोभनोक्ति विशिष्टम्' होती हैं, सभी की शोभा न्यारी होती है, फिर सूक्तियों के . महार्णव में रत्न-कण समान कुछ अनुपम सूक्तियों का चयन करना ऐसा ही है जैसा सागर तल में से मोती निकालना। उपाचार्य श्री ने विशाल और गहरे सूक्ति सागर में से ऐसी ही गहरी डुबकी लगाकर लगभग ३५० सूक्तियों का संचयन किया है, जो अपने आपमें बेजोड़ है, प्रत्येक प्रकार के मानव के लिए उपयोगी हैं और प्रत्येक अवसर पर सहायता करने वाला एक विशिष्ट विश्वस्त संगी हैं। ___ यह सूक्ति कोष प्रस्तुत ग्रन्थ का कलश है और उपाचार्य श्री की तीव्र मेधा तथा विशिष्ट संचयन कौशल का परिचायक है। भारतीय भाषाओं में, विशेषकर राष्ट्र भाषा हिन्दी में भारतीय नीति शास्त्र' पर पचासों पुस्तकें निकल चुकी है, और धड़ल्ले से निकल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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