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नीतिशास्त्र की प्रणालियां और शैलियां | १४७
योग किया है । संत, चूंकि सरलहृदय होते हैं, इसलिए वे सरल शब्दों में अपनी बात कह देते हैं; किन्तु इनकी सत्यपूत वाणी भी अमोघ होती है, श्रोताओं पर उसका यथेष्ट प्रभाव पड़ता है । अतः नीति की यह शैली भी सफल है।
पाश्चात्य जगत में सूक्त्यात्मक शैली बाइबिल में मिलती है। इसमें ईसामसीह के उपदेश संकलित हैं । कुरान शरीफ भी हजरत मुहम्मद के उपदेशों का संकलन है । इन्होंने भी उपदेशों के माध्यम से नीति की शिक्षाएँ
दी हैं।
प्राचीनतम पाश्चात्य मनीषी यूनानी चिन्तक सूकरात है। उसने विविध प्रकार के उपदेश दिये और सिद्धान्त निर्धारित किये । उसके विचारों को प्लेटो आदि ने गति दी। उसकी रचना Poetica आदि में भी नीतिवचन खोजे जा सकते हैं।
पाश्चात्य जगत में फ्रांस की राज्यक्रान्ति के बाद जो पुनर्जागरण हुआ, इसके बाद ज्ञान-विज्ञान की प्रगति हुई, साहित्य में भी गतिशीलता
आई । Chaucer ने Canterbury Tales तथा Shakespeare के सोनेट और नाटकों में नीति वचन मिल जाते हैं, उदाहरण के लिए
Everything glitters is not gold. - Merchant of Venice (प्रत्येक चमकने वाली वस्तु स्वर्ण नहीं होती) Beauty provoketh thieves rather sooner than gold. (सुन्दर स्त्री, स्वर्ण की अपेक्षा चोरों को शीघ्र आकर्षित करती है)
___ -As you like it. Kindness is divine.
--Merchant of Venice (क्षमा दैवी गुण है) Vanity is the last evil of greats. -Milton : Paradise Lost (अभिमान महान व्यक्तियों की बुराई है।)
आदि नीति वचन महान् साहित्यकारों के साहित्य में उपलब्ध हो जाते हैं।
इसी प्रकार के नीतिवचन Longfellow, Shelley, Tennyson, Robert Browning, Wordsworth 3rfa ofauti oft anfaatat # ft यत्र-तत्र उपलब्ध होते हैं । किन्तु इन्होंने स्वतन्त्र रूप से नीति पर कोई चिन्तन नहीं किया।
नीति सम्बन्धी चिन्तन शापेनहावर, कांट, नीत्शे,फ्रोबेल, जॉन ड्यूई,
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