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१४८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
एडलर जुंग, सिजविक आदि विद्वानों ने प्रस्तुत किया । यह सभी नीति चिन्तक और नीतिशास्त्री हैं । नीति के स्वरूप पर इन्होंने गहरा विश्लेषण किया, उसके सिद्धान्त निर्धारित किये, नीतिशास्त्र कला है अथवा विज्ञान इस पर खूब विवाद किये, ग्रंथ लिखे; किन्तु इनमें से कोई भी नैतिक जीवन व्यतीत करने वाला न रहा, इनके जीवन में नैतिकता का समावेश नाम मात्र को था।
__इन सभी की शैली विवेचनात्मक है । इनकी रचनाओं से पाठक का मस्तिष्क तो प्रभावित होता है, किन्तु हृदय प्रभावित नहीं होता, उसे नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा नहीं मिलती।
संक्षेप में भारतेतर तथा पश्चिमी सभ्यता तथा संस्कृतियों के प्राचीनतम ग्रंथों में, जो कि वास्तव में संतों तथा धर्मोपदेशकों के उपदेशों के संकलन हैं, उनमें तो नीति सम्बन्धी कथन उपदेशात्मक शैली में प्राप्त हो जाते हैं । किन्तु सोलहवीं शताब्दी के बाद के लगभग सभी ग्रन्थ साहित्य की गद्य विधा और विवेचनात्मक शैली में लिखे गये हैं। इनमें नीति-सम्बन्धी ऊहापोह तो मिलता है; किन्तु नीति-कथन की शैलियों का अभाव सा ही दृष्टिगोचर होता है। जैसी नीति-शैलियाँ भारतीय संस्कृति में उपलब्ध होती हैं, वैसी भारतेतर साहित्य में बहुत ही अल्पमात्रा में प्राप्त होती हैं।
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