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________________ १४६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन इसी प्रकार के अनेक उदाहरण उत्तराध्ययन सूत्र से उद्धृत किये जा सकते हैं । इस शैली का एक दोहा रहीम का भी है रहिमन ओछे नरन ते, तजौ वैर अरु प्रीति । काटे-चाटे स्वान के, दुहू भाँति विपरीत ॥ यहाँ कुत्ते के चाटने और काटने का उदाहरण देकर क्षुद्रबुद्धि मानवों के साथ शत्रुता और मित्रता दोनों को ही त्यागने की नीति बताई गई है, कहा गया है इनका प्रेम और द्वेष दोनों ही बुरे हैं । उर्दू में भी ऐसा ही एक शेर है कमीनों से तो बस साहब सलामत दूर की अच्छी । न इनकी दोस्ती अच्छी न इनकी दुश्मनी अच्छी ॥ उदाहरण शैली के उद्धरण संस्कृत साहित्य में भी उपलब्ध होते हैं । कथात्मक शैली - इस शैली में कथाओं द्वारा नीति की शिक्षा दी जाती है । जैन परम्परा के भाष्य और चूर्णि में कथाओं के माध्यम से उपनय द्वारा नीति की शिक्षा दी गई है । ज्ञातासूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्र में इस प्रकार की बोधप्रद कथाओं द्वारा विविध शिक्षा दी गई है । यही शैली बौद्ध जातक कथाओं में तथा रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों में भी अपनाई गई है । यहाँ तक कि शेखसादी के गुलिश्तों में भी यही शैली मिलती है । मध्ययुग में प्रचलित किस्सा तोता-मैना में भी तोता और मैना एक-एक कथा कहते हैं और फिर नीति की शिक्षा देते हैं । Jain Education International प्रभविष्णुता की दृष्टि से यह नीति की सबसे सफल शैली कही जा सकती है; क्योंकि कथात्मकता होने से पाठक अथवा श्रोता की रुचि भी लगी रहती है और उसे जीवन व्यवहारोपयोगी शिक्षा भी मिल जाती है । पंचतंत्र इस शैली का सबसे सफल ग्रन्थ कहा जा सकता है । उपदेशात्मक शैली - इस शैली में सीधा-सादा नीति का उपदेश दिया जाता है । संत, महात्मा तथा उपदेशकों ने अधिकांशतः इस शैली का उप १ रहीम ग्रन्थावली For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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