SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन ___इस प्रणाली को एक अपेक्षा से जैन-दर्शन कथित अपवाद मार्ग कहा जा सकता है। लेकिन अपवाद मार्ग और अगमन प्रणाली में एक विशेष अन्तर यह है कि अपवाद मार्ग उत्सर्ग मार्ग (सामान्य धर्म) को विस्मृत नहीं करता। उसकी दृष्टि तो उत्सर्ग पर ही रहती है, परिस्थितिवश व्यक्ति कुछ काल के लिए अपवाद मार्ग पर चलता है और उस परिस्थिति के समाप्त होते ही पुनः उत्सर्ग मार्ग पर चलने लगता है। लेकिन अपेक्षात्मक प्रणाली अनपेक्षात्मक प्रणाली को कोई स्थान नहीं देती, शाश्वत नैतिक मूल्यों का इसकी दृष्टि में कोई महत्व नहीं होता। यह सिर्फ बाहरी रीति-रिवाजों पर ही केन्द्रित रहती है, उन्हीं में नैतिक नियमों के निर्धारण के प्रयास में लगी रहती है। सामाजिक गतिविधियों को देखती है। लेकिन यह संसार बहुत विशाल है। देश-काल की परिस्थितियाँ भी बहुत भिन्न हैं, जलवायु में भी बहुत अन्तर है और इन सब के कारण रीतिरिवाजों (mores), मानवों की वृत्तियों में भी जमीन-आसमान का अन्तर आ जाता है। भारत में ही कुछ समाजों में मांसाहार बुरा नहीं माना जाता; जब कि कुछ लोग इसे छूना भी घृणित समझते हैं। कहीं विधवा-विवाह की परम्परा है और कहीं यह अनैतिक कार्य है। इसी प्रकार की स्थिति अन्य रीति-रिवाजों के बारे में भी है । ऐसी स्थिति में अपेक्षात्मक प्रणाली किसी सार्वभौम शाश्वत नैतिक नियम को स्वीकार नहीं कर पाती। यही इसका एकांगीपन है। ऐसा ही एकांगीपन अनपेक्षात्मक प्रणाली में है। वह शाश्वत सिद्धान्तों को स्वीकार करके व्यवहार पक्ष को उपेक्षित कर देती है । प्रत्यक्ष परिस्थितियों का उसमें कोई भी स्थान नहीं है। उधर वह लक्ष्य ही नहीं देती। जबकि नीतिशास्त्र मानव के आन्तरिक जगत से भी सम्बन्धित है और बाह्य जगत से भी। वह स्वहित के साथ लोकहित का भी विचार करता है । उसके सभी सिद्धान्त जितने व्यक्ति के स्वयं के लिए हितकारी हैं, उतने ही लोक के लिए भी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy