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नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ और शैलियाँ | १३६
है जबकि मनोविज्ञान तथ्यों का । इसी प्रकार नीतिशास्त्र के निर्णय आदेशात्मक और मनोविज्ञान के निर्णय वर्णनात्मक होते हैं । इन दोनों मूलभूत अन्तरों के कारण नीतिशास्त्र के अध्ययन में मनोवैज्ञानिक प्रणाली सफल नहीं हो सकती ।
नीतिशास्त्र की वादात्मक प्रणालियां
सामान्यतः नीतिशास्त्र ( साथ ही सभी कला तथा विज्ञानों की भी ) के अध्ययन की दो प्रणालियाँ हैं
(१) अनपेक्षात्मक और ( २ ) अपेक्षात्मक |
( १ ) अनपेक्षात्मक प्रणाली में नीति के सिद्धान्त अटल और सनातन माने जाते हैं, देश-काल- मानव आदि किसी भी स्थिति परिस्थिति से अपरिवर्तनीय होते हैं, उनमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं होता ।
अंग्रेजी में इसे (Deductive Method) निगमनात्मक प्रणाली कहा जाता है । इस प्रणाली में पहले सिद्धान्त, नियम तथा आदर्श निश्चित कर लिए जाते हैं और बाद में उनका प्रयोग किया जाता है, यानी मानव उनका पालन करते हैं ।
उदाहरणार्थ - 'सत्य बोलना' नीति है । यह त्रिकाल पालनीय है, इसमें किसी भी परिस्थिति में परिवर्तन क्षम्य नहीं है, कोई अपेक्षा की गुंजायश नहीं है तो यह नीतिशास्त्र की अनपेक्षात्मक प्रणाली है । इसके अनुसार नियम कठोर (Rigid) दृढ़ और त्रिकालवर्ती होते हैं ।
जैन दर्शन में इसे उत्सर्गं मार्ग कहा गया है ।
(२) अपेक्षात्मक प्रणाली - इस प्रणाली के अनुसार नीति के नियम परिवर्तनशील होते हैं । नैतिक मूल्य पुरुष, प्रकृति परिस्थिति और काल सापेक्ष होते हैं । इस प्रणाली द्वारा विवेचन करते समय सामाजिक रीतिरिवाज, व्यक्तिगत आवेग संवेग, आदत, देश - काल की परिस्थितियों का भी विचार किया जाता है ।
इसे अंग्रेजी में अगमन प्रणाली ( Inductive method) कहा जाता है । इस प्रणाली में पहले मानवों की आवश्यकताओं, उनकी परिस्थितियों से सम्बन्धित तथ्यों का संग्रह किया जाता है और फिर उनसे निष्कर्ष निकालकर नियम निर्धारित किये जाते हैं ।
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