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नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ और शैलियाँ | १४१
अतः अनपेक्षात्मक और अपेक्षात्मक-दोनों ही प्रणालियाँ पृथक्पृथक् नीतिशास्त्र के अध्ययन में सक्षम नहीं हैं।
समन्वयात्मक नैतिक प्रणाली वास्तव में नीतिशास्त्र के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक प्रणाली, दार्शनिक प्रणाली, अनपेक्षात्मक और अपेक्षात्मक आदि कोई भी प्रणाली एकांगीरूप में सक्षम नहीं है।
इसका कारण यह है कि नीतिशास्त्र न केवल विज्ञान है, न केवल दर्शनशास्त्र और न केवल तत्वविद्या तथा न केवल आचारशास्त्र; अपितु यह इन सबका समन्वित रूप है।
विज्ञान के रूप में यह आदर्शों और प्रत्यक्ष व्यवहार में तथा घटित घटनाओं का विश्लेषण करके कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करता है, दर्शनशास्त्र के रूप में यह नैतिक आदर्शों की संकल्पना करता है, तत्त्वविद्या के रूप में उन आदर्शों में निहित सिद्धान्तों की खोज करके उन्हें निश्चित करता है और आचारशास्त्र के रूप में उन आदर्शों को व्यावहारिक प्रयोग में लाता है।
अतः इसके (नीतिशास्त्र के) सम्पूर्ण अध्ययन के लिए समन्वयात्मक प्रणाली ही सक्षम हो सकती है।
समन्वयात्मक प्रणाली को ही पश्चिमी नीतिशास्त्रियों ने समीक्षात्मक प्रणाली कहा है। इसी प्रणाली का उपयोग यूनान के प्राचीनतम मनीषी सुकरात ने किया था। श्री जेम्स सेथ ने इस प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा है
"नीतिशास्त्र की सच्ची प्रणाली सकरातीय प्रणाली है, जिसमें व्यवस्थित करने के दृष्टिकोण से मानव के यथार्थ नैतिक निर्णयों की सूक्ष्म और पूर्ण परीक्षा की जाती है ।
वुण्ट के अनुसार, सच्ची नैतिक प्रणाली वैज्ञानिक और दार्शनिक
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The true method of Ethics is the Socratic method of a thorough going a d exhaustive cross-examinations of men's actual moral judgements, with a view to their systemisation.
- Seth. J. : A Study of Ethical Principles p. 35
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