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________________ १३२ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन ___ बुद्ध के पूर्वजन्म की घटनाओं को आधार बनाकर ही सम्पूर्ण जातक साहित्य की सर्जना की गई है। जातक कथाओं में ही पूर्वजन्म के शुभाशुभ कर्मों को सुख-दुःख का कारण बताया गया है। ईसाई और इस्लाम धर्म यद्यपि यह स्वीकार करते हैं कि मानव अपने नैतिक शुभाशुभ कर्मों का फल पूरा इस जीवन में नहीं भोग पाता, फिर भी ये पुनर्जन्म को स्वीकार नहीं करते। इनकी धारणा है कि शुभाशुभ कर्मों के अनुसार आत्मा (रूह-soul) को स्वर्ग अथवा 'नरक (जन्नत या दोजख Heaven or Hell) को ईश्वरीय (खुदा या God के) आदेश से भेज दिया जाता है। . किन्तु आधुनिक युग में हुई अनेक पुनर्जन्म की घटनाओं ने पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्थापित कर दिया है और कट्टर निरीश्वरवादी नीत्शे की अवधारणा को एक प्रकार से निरस्त कर दिया है। वस्तुस्थिति यह है कि कर्मसिद्धान्त अनिवार्य रूप से पुनर्जन्म के प्रत्यय से संलग्न है, पूर्ण विकसित पुनर्जन्म के सिद्धान्त के अभाव में कर्मसिद्धान्त अर्थशून्य है। नीतिशास्त्र के क्षेत्र में जितना प्रभावी कर्म प्रत्यय है, उतना ही प्रभावशाली पुनर्जन्म का प्रत्यय है। पुनर्जन्म अथवा आगामी जन्म में सूख-प्राप्ति के लिए मानव नैतिक कर्तव्यों की ओर प्रेरित होता है। वह अपना व्यवहार इस प्रकार का रखने का प्रयास करता है, जिससे उसे आगामी जन्म में दुर्गति में जाकर दुःख न भोगने पड़ें। स्वर्ग और नरक का प्रत्यय भी पुनर्जन्म के प्रत्यय के साथ ही संलग्न है। सभी धर्मों ने स्वर्ग-नरक के वर्णन से मानव को नैतिक जीवन जीने की ओर प्रेरित किया है। यद्यपि यूनान में Epicureanism और भारत में चार्वाक भोगवादी विचारधाराएँ अस्तित्व में आईं । जिन्होंने पुनर्जन्म, नरक, स्वर्ग, आत्मा की अमरता, कर्म सिद्धान्त का खण्डन किया, किन्तु इन विचारधाराओं का जन-मानस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। ये विचारधाराएँ समय के महा १ Mohanlal Mehta : Jaina Psychology, p. 173 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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