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नैतिक प्रत्यय | १३३
सागर (ocean of the time) में बुलबुले ( bubble ) के समान विलीन हो गईं ।
पुनर्जन्म का प्रत्यय भारतीय नीतिशास्त्र का तो प्रमुख प्रत्यय है ही मार्टिन्यू, कांट तथा सेथ आदि भी पुनर्जन्म को स्वीकार करते हैं और उसे नैतिक प्रत्ययों में स्थान देते हैं ।
संस्कार प्रत्यय
संस्कार हिन्दू धर्म का विशेष शब्द है । मनु ने इन्हें शरीर की शुद्धि बताया है । प्रमुख संस्कार १६ माने गये हैं । किन्तु नीतिशास्त्र की दृष्टि से, इनमें से उपनयन और विवाह उल्लेखनीय हैं ।
उपनयन का अभिप्राय है- विद्या प्रारम्भ करना । विद्या ही विनय की जननी है । विनय और अनुशासन के रूप में बालक सर्वप्रथम नैतिकता का पाठ पढ़ता है । गुरु से प्राप्त ज्ञान तथा शिक्षा - कलाओं से स्वयं को भावी जीवन के लिए तैयार करते हुए जीवन में नैतिकता का महत्व समझता है ।
विद्या समाप्त करने के बाद जब गुरु आशीर्वाद के रूप में 'सत्यं वद धर्मं चर' का उपदेश देते हैं तो वह नैतिकता का ही पाठ है कि जीवन में सदा नीति का व्यवहार करना चाहिए ।
विवाह को श्री बेलवलकर ( Velvalker ) ने व्यक्ति का समाजीकरण (socialization) कहा है । विवाह के बाद गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के साथ ही मानव पर समाज, जाति, राष्ट्र आदि सभी के उत्तरदायित्व आ जाते हैं ।
माता-पिता एवं वृद्धजनों की सेवा, आश्रितों का उचित पालनपोषण तथा शिक्षा-दीक्षा एवं अन्य सभी प्रकार के कर्तव्यों को पूरा करते हुए वह नीतिपूर्वक जीवन यापन करता है ।
गृहस्थाश्रम के उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए धन आवश्यक है अतः वह धन का उपार्जन तो करता है, किन्तु करता है नोतिपूर्ण उपायों से ही ।
नैतिक प्रत्ययों के रूप में, भारतीय शास्त्रों में वर्णित, विद्यारम्भ तथा विवाह - इन दो संस्कारों का उल्लेखनीय महत्व है । विद्याप्राप्ति नैतिक जीवन व्यतीत करने की पूर्वभूमिका है, नींव है और विवाह के बाद
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