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नैतिक प्रत्यय | १३१
इसी अपेक्षा से पाप कर्म-हिंसा, झूठ, चोरी आदि अनैतिक प्रत्यय और सत्य, प्रामाणिकता, पुण्य, सहनशीलता, सहयोग, सेवा, परोपकार आदि नैतिक प्रत्यय हैं। ____ मानव इन नैतिक प्रत्ययों का पालन तथा अनुगमन कर्म सिद्धान्त में विश्वास रखने के कारण अधिक लगनशीलता तथा गहराई और सावधानी से करता है । इसीलिए भारतीय नीतिशास्त्र में कर्म (सिद्धान्त) को अति प्रभावशाली नैतिक प्रत्यय माना गया है ।
पुनर्जन्म : नैतिक प्रत्यय पुनर्जन्म की अवधारणा (साथ ही पूर्वजन्म को भी) कर्म सिद्धान्त से ही संलग्न है । इस (पुनर्जन्म) का आधार भगवान महावीर का यह कथन है कि सुचीर्ण और दुश्चीर्ण (शुभ-अशुभ) कर्मों का फल इस जीवन में भी मिलता है और अगले जन्म में भी। इसी प्रकार पूर्व जीवन में किये हुए शुभ कर्म उस पूर्वजीवन में भी फल देते हैं और इस वर्तमान जीवन में भी।
भारतीय दर्शनों, शास्त्रों और पुराणों में अनेक जन्मों का वर्णन हुआ है । बौद्धजातक, जिनमें बोधिसत्वों के रूप में, बुद्ध के पुनर्जन्मों की घटनाएँ संकलित हैं, स्पष्ट ही पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को प्रमाणित करती हैं । कौषीतकि उपनिषद के अनुसार आत्मा अपने कर्म और ज्ञान के अनुरूप कीड़े, मछली, पक्षी, व्याघ्र, सर्प आदि के रूप में जन्म धारण करती है।
भारत में विख्यात ८४ लाख जीव-योनियों में विश्वास आत्मा की अमरता के साथ पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का विश्वस्त प्रमाण है ।
जैन दर्शन स्वयं भगवान ऋषभदेव और भगवान महावीर के कई पूर्वजन्मों का वर्णन पुनर्जन्म के प्रत्यय को कर्माधारित मानते हुए स्पष्ट प्रमाणित करता है।
१ इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफल विवागसंजुत्ता भवन्ति, इहलोगे दुच्चिणा कम्मा परलोगे दुइफलविवागसंजुत्ता भवन्ति, परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफल विवागसंजुत्ता भवन्ति, परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवन्ति । (इसी प्रकार सुचीर्ण (शुभ) कर्मों का फल भी वर्णित है ।)
-ठाणांग, ठाणा ४, सू० २८२
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