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जैन नीति के स्वरूप को प्रस्तुत ग्रन्थ में मैं कितना स्पष्ट कर सका हूँ, यह निर्णय तो प्रबुद्ध पाठक ही कर सकेंगे । किन्तु मुझे इतना परितोष अवश्य है कि जैन वाङ्गमय की एक रिक्त विधा को मैंने भरने का एक लघु वनम्र प्रयास किया है ।
मेरे इस प्रयास को सफल बनाने में स्नेह सौजन्यमूर्ति श्री श्रीचन्दजी सुराना व डॉ० बृजमोहन जैन का बहुमूल्य सहकार मिला है । उन्होंने पुस्तक के संपादन के साथ ही कलात्मक मुद्रण और त्रुटिरहित प्रूफ संशोधन करके ग्रन्थ को चित्ताकर्षक बनाने का भी प्रयास किया है ।
संघनायक महामहिम राष्ट्रसन्त आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषिजी महाराज की अपार कृपादृष्टि व आशीर्वाद मेरे लिए सम्बल रूप रहा है । तथा परमश्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० का मैं किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ जिनकी अपार कृपा से ही मैं साधना व साहित्य क्षेत्र में प्रवेश कर सका हूँ और आज जो कुछ भी हूँ वह उन्हीं की कृपा का प्रतिफल है ।
पूज्यनीया मातेश्वरी स्वर्गीया महासती प्रतिभामूर्ति श्री प्रभावतीजी म० व ज्येष्ठ भगिनी महासती श्री पुष्पवतीजी की प्रबल प्रेरणा इस कार्य को शीघ्र सम्पन्न करने के लिए प्रेरक रही । श्री रमेश मुनि श्री राजेन्द्र मुनि श्री दिनेश मुनि श्री सुरेन्द्र मुनि आदि की सेवा तथा सहयोग भी विस्मृत नहीं की जा सकती ।
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ज्ञात व अज्ञात रूप में जिन किन्हीं का भी सहयोग मिला है तथा जिन ग्रन्थों का मैंने उपयोग किया है उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ । आशा है प्रस्तुत ग्रन्थ जैन नीति के स्वरूप को समझने में सहायक होगा ।
- उपाचार्य देवेन्द्र मुनि
गुरु पूर्णिमा
महावीर भवन, इन्दौर (म. प्र. )
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