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११६ / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
संस्कृति-सभ्यता-समाज में पाये जाते हैं और भारतीय समाज पर जिनका प्रभाव है। वर्णाश्रम व्यवस्था
वर्ण शब्द 'वृ' धातु से व्युत्पन्न हुआ, जिसका अर्थ है चुनना। इस दृष्टि से वर्ण का अर्थ है-व्यक्ति जिसे अपने स्वभाव और कर्म के अनुसार चुनता है।
वैसे वर्ण का अर्थ रंग भी होता है। ऋग्वेद (१/७३/७, २/३/५, ६/६७/१५) आदि स्थलों पर वर्ण शब्द का रंग के लिए प्रयोग हुआ है। इससे श्री पांडुरंग वामन काणे ने यह अभिप्राय व्यक्त किया है कि वर्ण शब्द का प्रयोग प्रारम्भ में गौरवर्ण आर्यों तथा कृष्णवर्ण दासों के लिए होता था।
___ नजातिविज्ञान (Anthropology) में अब तक यह शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है-दक्षिणी अफ्रीका की जातियाँ कृष्णवर्णीय कही जाती हैं, भारतीयों को गौरांग अंग्रेज तिरस्कारपूर्ण शब्दों में ब्लैक मैन (Black men) कहते थे।
किन्तु नैतिक प्रत्यय के रूप में वर्ण शब्द से रंग ग्रहण नहीं किया जाता। यहां तो वर्ण स्तर (status) अथवा ऊँच-नीच की भावना को अभिव्यक्ति देता है।
भारतीय समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-यह चार वर्ण माने गये हैं। वैदिक साहित्य में इनकी बहुत ही विस्तृत चर्चा है। ऋग्वेद से लेकर पुराण आदि इस चर्चा से भरे पड़े हैं। स्मतियों में इनके कर्तव्याकर्तव्य की विस्तृत विवेचना है। गीता में भी चार वर्णों की संरचना श्रीकृष्ण ने स्वयं की है, ऐसा उल्लेख मिलता है।
लेकिन प्रारम्भ में वर्ण व्यवस्था जन्म के अनुसार नहीं अपितु कर्म
१. (क) ऋग्वेद, पुरुष सूक्त १०/६७
(ख) मनुस्मृति ८/४१३ आदि २. (क) चातुर्वण्यं मया सृष्टं गुणकर्म विभागशः ।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध यकर्तारमव्ययम् ।। (ख) ब्राह्मण क्षत्रिय विशां शूद्राणां च परंतप ! ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैगुण.॥
-गीता ४/१३
-गीता १८/४१
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