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________________ नैतिक प्रत्यय | ११५ काण्ट का कथन है कि नैतिक कार्य करने में व्यक्ति इच्छाओं के संघर्ष में स्वतन्त्र चुनाव करता है । इच्छाएँ-काम, क्रोध, लोभ आदि की होती हैं। इन पर विजय के लिए आत्म-नियन्त्रण ही एकमात्र प्रभावी साधन है । आत्म-नियन्त्रण से प्रभावित होकर ही व्यक्ति स्वतन्त्रतापूर्वक संकल्प करता है, यही नीतिशास्त्र में संकल्प की स्वतन्त्रता का प्रत्यय है। नैतिक शब्द 'संकल्प' के अधिकतम निकट जैन दर्शन का शब्द हैदृष्टि (point of vision) । दृष्टि सम्यक् भी होती है और मिथ्या भी। सम्यक दृष्टि नैतिक है और मिथ्या दृष्टि अनैतिक । सम्यकदृष्टिपूर्वक किये गये विचार एवं कार्य नैतिक होते हैं; जबकि मिथ्या दृष्टि से प्रभावित कार्य अनैतिक । मिथ्याष्टिपूर्वक की गई सभी शुभाशुभ क्रियाओं और विचारों को 'बाल' शब्द से विशेषित करने में जैन तत्त्वद्रष्टाओं का यही भाव परिलक्षित होता है। जेम्स सेथ के शब्दों में भी यही भाव दृष्टिगोचर होता है, जबकि वह कहता है-संकल्प का कार्य सृष्टि करना ही नहीं, अपितु नियन्त्रण और निर्देशन करना भी है। जेम्स सेथ का संकल्प विषयक यह कथन निश्चित हो जैन दर्शन द्वारा निर्धारित 'दृष्टि' को प्रतिबिम्बित कर रहा है । इस प्रकार स्पष्ट है कि संकल्प की स्वतन्त्रता नीतिशास्त्र का आधारभूत प्रत्यय है। इसके अभाव में नीतिशास्त्र की सम्भावना ही नहीं हो सकती। साथ ही इससे आत्म स्वातन्त्र्य की अभिव्यक्ति होती है, जो भारतीय आचार एवं नीति का हार्द है। आचार और नीति के सभी सिद्धान्त आत्म-स्वातन्त्र्य के केन्द्रबिन्दु के ही चारों ओर घूमते हैं । इसीलिए संकल्प की स्वतन्त्रता को नीतिशास्त्र में आत्मा द्वारा नियन्त्रित स्वीकार किया गया है । आत्मा द्वारा अनियन्त्रित संकल्प को स्वतन्त्रता को नीतिशास्त्र में कोई स्थान ही नहीं दिया गया है । अभी तक हमने नीतिशास्त्र के उन प्रत्ययों की विवेचना की जो सार्वभौम कहे जा सकते हैं, इनको पश्चिमी नीतिशास्त्रियों ने भी स्वीकार किया है । किन्तु अब हम ऐसे प्रत्ययों की विवेचना करेंगे जो भारतीय 1. James Seth : A Study ol Ethical Principles, p. 44. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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