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________________ नैतिक प्रत्यय | १११ जैन आगमों के प्रसिद्ध भाष्यकार जिनदासगणि ने इस विषय में एक महत्वपूर्ण बात कही है कि-निषिद्ध कर्म क्या है और विहित कर्म क्या है, इसकी सबसे बड़ी कसौटी व्यक्ति का हृदय है। यदि व्यक्ति सच्चाई एवं प्रामाणिकता के साथ कर्म करता है तो वह विहित कर्म ही माना जायेगा कज्जे सच्चेण होयवं तैत्तिरीय ब्राह्मण में इन्हीं शब्दों का पोषण किया गया है। वहाँ कहा गया है वृजनमनृतं दुश्चरितम् । ऋजुकर्म सत्यं सुचरितम् ॥ कुटिलतापूर्वक किया गया कर्म (कर्तव्य) अनाचार अथवा दुराचार है और सरलतापूर्वक (ऋजुपन से) किया गया कर्म सदाचार है । सदाचार अथवा विशुद्ध नैतिक कर्तव्य को जाँचने-परखने की एकमात्र कसौटी व्यक्ति की स्वयं की प्रज्ञा और अन्तःकरण ही है। वही निश्चित कर सकता है कि उसका कौन सा कर्म सदाचार है और कौन-सा नहीं। सद्गुण विभिन्न नैतिक प्रत्ययों में सद्गुणों का भी अपना एक विशिष्ट स्थान है । सद्गुण (virtue) का अभिप्राय है सद् (अच्छे) गुण । इसके विरोधी दुर्गुण (vices) होते हैं। मानव स्वभाव की विचित्रता यह है कि इसमें सद्गुण और 'दुर्गुण दोनों ही पाये जाते हैं। कभी बाह्य निमित्त पाकर सद्गुण उभरते हैं तो कभी दुर्गुण प्रस्फुटित हो जाते हैं । ___ उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि जो दस प्रकार के धर्म बताये गये हैं, नीतिशास्त्र की दृष्टि.से उनकी परिगणना सद्गुणों में होती है। इसके अतिरिक्त प्रमोद, कारुण्य, सर्वजनहितकारिता, अभावग्रस्तों को दान देना आदि भी सद्गुण ही हैं । ___नैतिक प्रत्ययों की संकल्पना के अनुसार वे सभी भावनाएँ, गुण और कार्य सद्गुण हैं जो व्यक्ति के स्वयं के व्यक्तित्व को उन्नत बनाते हैं और परिवार, समाज आदि में सुव्यवस्था बनाए रखने में सहायक होते हैं । १ निशीथभाष्य ५२४८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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