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११२ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
इनके विपरीत दुर्गुण वे अनैतिक भावनाएँ आचरण और कार्य हैं जो व्यक्ति को, समाज को विशृंखलित करते हैं ।
सद्गुण तथा दुर्गुणों की विशिष्ट विशेषता यह है कि यह जन्मजात भी होते हैं और अजित भी । बाह्य परिस्थितियाँ इनमें बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं । विपरीत परिस्थितियों अथवा लोमहर्षक घटना से सरल व्यक्ति भी दुर्गुणी बन जाता है, जैसे सरल-सीधा अर्जुनमाली' अपनी पत्नी के साथ हुए अत्याचार के प्रतिशोध के आवेग में बहक कर हत्यारा बन गया था और सद्गुणी अहिंसक सुदर्शन सेठ का निमित्त तथा बाद में भगवान महावीर का निमित्त पाकर स्वयं गुणी बना था। क्षमा गुण धारण करके मुक्त हो गया था।
___ इसी प्रकार चांडाल क्रोधी हरिकेशबल ने देखा कि विषसहित सर्प को सभी लोग मारते हैं तथा निविष सर्प को कोई छेड़ता भी नहीं। इस निमित्त को पाकर उसने कटु भाषा एवं क्रोध रूपी दुर्गुण को त्याग दिया, क्षमाशील बनकर सद्गुणी हुआ और श्रेष्ठ तपस्वी बनकर उन्होंने परम शुभ-शुद्ध मुक्ति को प्राप्त कर लिया। पुण्य और पाप
पुण्य (merit) का अभिप्राय धर्मशास्त्रों के अनुसार मन-वचन-काय की शुभ प्रवृत्ति और पाप (demerit) का अभिप्राय मन-वचन-काय की अशुभ प्रवृत्ति है । नीतिशास्त्र में इन शब्दों का प्रयोग लगभग इसी अर्थ में होता है । लेकिन मैकेंजी जैसे नीतिशास्त्री इन शब्दों के लिए उचित-अनुचित का प्रयोग अधिक अच्छा मानते हैं।
किन्तु उचित-अनुचित समाज-सापेक्ष शब्द हैं, जबकि पुण्य-पाप आत्म-सापेक्ष । उचित-अनुचित की अवधारणा देश-काल की परिस्थितियों के अनुसार भिन्न हो सकती है । जैसे–पश्चिम में मांस एवं मदिरा का सेवन अनुचित नहीं माना जाता, जबकि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अनुसार यह सर्वथा अनुचित है, अनैतिक है ।
पुण्य-पाप नीतिशास्त्र के प्रत्यय हैं, जो सार्वभौम हैं, पशुजगत तक भी
१. अर्जुनमाली की घटना के लिए देखें---अन्तकृद्दशा सूत्र, ५/३ २. हरिके शबल की पूरी घटना के लिए देखें- उत्तराध्ययन सूत्र, अ० १२ की वृत्ति
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