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________________ नीतिशास्त्र के विवेच्य विषय | १०१ सदाचार में दो शब्द समाहित हैं-सत् और आचार । कोई आचार जब व्यक्ति के, स्वयं के लिए तथा साथ ही समाज के लिए भी, सत् अर्थात् कल्याणकारी होता है, तभी वह सदाचार कहलाता है । और कल्याण (good) नीतिशास्त्र का विषय है, अतः नीतिशास्त्र को इस अपेक्षा से सदाचार-शास्त्र भी कहा जा सकता है । मूल्य का विवेचन 'अमुक व्यक्ति सज्जन (gentle) है', 'अमुक दुष्ट (rude) है', 'गांधी जी राजनीतिक संत ! political saint) थे', 'राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे', 'रावण पापी था'-इस प्रकार की धारणाएँ साधारणतया मनुष्य अन्य व्यक्तियों के प्रति बनाया करते हैं। इन धारणाओं को ही नीतिशास्त्र में मूल्यांकन कहा जाता है। ये धारणाएँ, अनर्गल और अनायास नहीं बनतीं, इनका ठोस आधार होता है । यह आधार व्यक्ति के जीवन-चरित्र में व्याप्त और प्रगट विशेषताओं से सम्बन्धित होता है। व्यक्ति का नैतिक चरित्र और व्यावहारिक चरित्र कैसा है, यह इन धारणाओं से स्पष्ट होता है । नैतिक चरित्र, नैतिक मूल्यों पर आधारित होता है। इसीलिए नीतिशास्त्र में मूल्यों (values) का भी विवेचन किया जाता है। . न्याय, कर्तव्य और श्रेय के विवेचन को मनीषियों ने नीतिशास्त्र का दार्शनिक पहलू कहा है और सदाचार को धार्मिक तथा सामाजिक; किन्तु अरबन (Urban) जैसे कुछ आधुनिक नीतिशास्त्रियों ने नीतिशास्त्र को 'सुव्यवस्थित मूल्यांकन का विज्ञान माना है ।। इस दृष्टि से, नीतिशास्त्र में नैतिक निर्णय का स्वरूप, कर्ता, विषय, मानदण्ड आदि का विवेचन अथवा नैतिक निर्णयों का अध्ययन किया जाता है। किसी व्यक्ति को बुरा (wrong-rude) अथवा भला (gentie-right) कहने का आधार क्या है ? इसकी कसौटी क्या है ? इन सभी नैतिक मूल्यों का विवेचन नीतिशास्त्र करता है। 1. Ethics is then, in the last analysis, just the science of syste matized valuing, or otherwise expressed, the valuing activity of man made systematic. - W. M. Urban : Fundamentals of Ethics, p. 8 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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