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नीतिशास्त्र की प्रकृति और अन्य विज्ञान | ६३
है। प्राचीन विपाकसूत्र में भी इस प्रकार के चरित्र परिवर्तन के अनेक उदाहरण मिलते हैं।
इसी प्रकार आत्मा के स्वरूप सम्बन्धी मान्यताओं के आधार पर नैतिक प्रत्यय भी बदल जाते हैं, नये-नये वाद खड़े हो जाते हैं । नीतिशास्त्र का सुखवाद आत्मा को वासनात्मक मानता है, बुद्धिपरकतावाद बौद्धिक और पूर्णतावाद बुद्धि और वासना दोनों को आत्मा के स्वरूप में सम्मिलित कर लेता है।
भारतीय उपनिषदों में भी कहीं आत्मा को वासनात्मक कहा गया है तो कहीं और मनरूप, कहीं उसको बुद्धि रूप भी स्वीकार किया गया है । जैसी दार्शनिक मान्यता होती है वैसे ही नैतिक सिद्धान्तों का निर्माण होता है।
। अतः स्पष्ट है कि दर्शनशास्त्र और नीतिशास्त्र दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
इसी प्रकार सौन्दर्यशास्त्र (Aesthetics) आदि अनेक विज्ञानों से नीतिशास्त्र का सम्बन्ध है। नैतिक प्रतिमानों (Norms) के अनुसार ही मनुष्य सौन्दर्य-असौन्दर्य की विवेचना/कल्पना करता है। वेशभूषा आदि को भी नैतिक धारणाएँ प्रभावित करती हैं।
अतः यह स्पष्ट है कि नीतिशास्त्र एक नियामक विज्ञान है और इसका अन्य विज्ञानों से भी सम्बन्ध है। वस्तुतः नीतिशास्त्र की परिधि में मानव जीवन की अधिकांश क्रियाएँ तथा व्यवहार आ जाते हैं, अतः इसका अन्य विज्ञानों से सम्बन्धित होना स्वाभाविक ही है।
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