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________________ ६ नीतिशास्त्र के विवेच्य विषय नीतिशास्त्र मानव-जीवन के प्रत्येक पहलू से जुड़ा हुआ है । मनुष्य के आचार-विचार, व्यवहार और क्रिया-कलाप इसकी परिधि के अन्तर्गत समाविष्ट हो जाते हैं । मानव, संसार के प्रत्येक भाग का मनुष्य, अपने चारों ओर के समाज को, अन्य व्यक्तियों को देखता है, उनके चाल-चलन और व्यवहार को देखता है, स्वयं भी उनसे व्यवहार करता है 'और प्रेमपूर्ण - सहज सम्बन्ध बनाने के प्रयास भी करता है । लेकिन वह देखता है कि समाज में भिन्न-भिन्न प्रकार की रुचि - प्रवृत्ति वाले मनुष्य हैं । कुछ लोग सहयोग और समन्वय में विश्वास करने वाले हैं तो कुछ विघ्नसंतोषी भी हैं । ऐसी स्थिति में उसके सामने कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं, यथा(१) न्याय क्या है और इसे प्राप्त करने का तरीका क्या है ? (२) कर्तव्य क्या है और साथ ही क्या अकर्तव्य है अर्थात् करणीय कार्य और अकरणीय कार्य क्या हैं ? (३) श्र ेय और अय ? (४) सदाचार और दुराचार ? और फिर वह यह भी सोचता है कि उसके जीवन में उपयोग आने वाले साधनों / वस्तुओं तथा आचार-विचारों का क्या मूल्य है ? यह मूल्य कैसे निर्धारित होता है, इन मूल्यों का जीवन में क्या महत्व है ? ये सभी और इन जैसे ही अन्य अनेक प्रश्न बुद्धिशील मानव के ( १४ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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