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नीतिशास्त्र की प्रकृति और अन्य विज्ञान | ६१
यह आदर्श वे ही हैं जो नीतिशास्त्र निर्धारित करता है | अतः अर्थ - शास्त्र और नीतिशास्त्र कुछ मतभेदों के होते हुए भी परस्पर सम्बन्धित हैं । नीतिशास्त्र और धर्म ( Ethics and Religion)
धर्म और नीति का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है । नीति का निर्माण धर्म करता है और धर्म को तेजस्वी तथा प्रभावशाली बनाने में नीति पूर्णतया सहयोगिनी बनती है । इसे दूसरे शब्दों में यों भी कह सकते हैं कि धर्म भाई है और नीति बहन है । ये दोनों परस्पर अन्योन्याश्रित हैं ।
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जैन आचार्यों ने नीति को धर्म की अनुगामिनी बताया हैits धम्मानुगामिणी । धर्मविहीन नीति नीति नहीं कहलाती । और साथ ही धम्माणजोयणी, धर्म के साथ सम्बन्ध रखने वाली भी माना है ।
नीति का परम शुभ ( ultimate good) वहो है जो धार्मिक जीवन के व्यावहारिक पक्ष की पराकाष्ठा है । धर्म ने जिसे सर्वभूतहिते रताः कहा नीति ने उसी को परम शुभ कहा है । इसी को जैन विचारधारा ने स्वपरकल्याण के रूप में व्याख्यायित किया ।
कुछ पश्चिमी विचारक तो नीति को ही धर्म मानते हैं । मैथ्यू आरनाल्ड के शब्दों में- “धर्म, भावना से युक्त नैतिकता के अतिरिक्त कुछ नहीं है""
यदि विशाल दृष्टिकोण से विचार किया जाय तो नैतिकता और धर्म व्यावहारिक पक्ष में कोई अन्तर नहीं है । नैतिक नियम वही हैं जो धार्मिक नियम हैं । हिंसा न करना, झूठ न बोलना, धोखा- फरेब आदि न करना - ये सभी नैतिक नियम भी हैं और धार्मिक नियम भी । नीति और धर्म दोनों में ही इनका समान महत्व है ।
इसीलिए कहा गया है धर्म और नीति- दोनों ही तत्व जीवन निर्माण में आवश्यक हैं, इनके बिना जीवन मृत्यु तुल्य है ।
अतः नीति और धर्म को एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता, दोनों का जीवन में समान महत्व है, दोनों ही साथ - साथ समानांतर चलते हैं । धर्म का लक्ष्य है - व्यक्ति को उत्तम सुखस्थान में पहुंचाना, और नीति का लक्ष्य है सामाजिक, वैयक्तिक आदि बाह्य परिस्थितियों का ऐसा निर्माण जिनसे व्यक्ति उस सुख स्थान में पहुंच सके । इसीलिए जैनाचार्यों ने
1 Religion is nothing but morality touched with emotion.
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-Matthew Arnold
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