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६० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
नीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र (Ethics and Economics)
नीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है । अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक धन-सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन करता है । आर्थिक संपन्नता एवं विपन्नता का अध्ययन भी अर्थशास्त्र का विषय है ।
यद्यपि प्रकृति, दृष्टिकोण, क्षेत्र, निर्णय आदि विषयों में इन दोनों में अन्तर है किन्तु जहाँ तक मूल्य (value) का सम्बन्ध है, इन दोनों विज्ञानों STATE है | अर्थशास्त्र के मूल्य नैतिक सिद्धान्तों पर आधारित
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होते हैं । भारतीय दृष्टिकोण में तो नीति प्रमुख है और धन (अर्थ) गौण । आचार्य हेमचन्द्र तथा हरिभद्र सूरि ने मार्गानुसारी के ३५ बोलों में स्पष्ट कहा है कि मानव को न्याय नीति से धन का उपार्जन करना चाहिए तथा उसे नीति सम्पन्न होना चाहिए । अनीति अथवा नीति का त्याग करके उपार्जित किये हुए धन को भारतीय संस्कृति में निंद्य माना गया है ।
यद्यपि प्राचीन अर्थशास्त्री और पश्चिमी अर्थशास्त्र के जनक एडम स्मिथ (Adam Smith) ने अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान (a Science of Wealth) बताया है किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री इस परिभाषा से संतुष्ट नहीं हैं । वे अब अर्थशास्त्र में नीति के तत्वों का समावेश करना चाहते हैं । जैसा कि एक अर्थशास्त्री अपने विचार व्यक्त करता है -
"आधुनिक युग का अर्थशास्त्र केवल 'क्या है' का विज्ञान रहकर ही संतुष्ट नहीं है । वर्तमान समय में उपदेशों के बजाय सामाजिक तत्व पर अधिक बल दिया जाता है । अब अर्थशास्त्र के दर्शन की पुनः स्थापना की ओर प्रवृत्ति है इसका तात्पर्य मानव-जीवन के परम आदर्श की खोज से है, जहाँ तक कि वे आदर्श आर्थिक प्रक्रिया की सीमाओं में खोजे जाने संभव हो सकें । "
1 "Present day Economics is not altogether content to remain a science of 'what is'. The current emphasis is less didactic and more social in character. The tendency now is in the direction of re-establishing a philosophy of Economics. And by this I mean a search for the ultimates of human life in so far as these can be discovered within the limits of economic process."
—E. W. Goodhue : Economics as Philosophy, International Journal of Ethics, Vol. xxxvi, No. 1.
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