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नीतिशास्त्र की प्रकृति और अन्य विज्ञान | ८७
एक प्रकार से नीतिशास्त्र का अंग ही कहा जा सकता है । श्री हाबहाउस के ऐसे ही विचार हैं, वह लिखता है_ "राजनीति को नीतिशास्त्र के अधीन ही होना चाहिए । हमें चाहिए कि हम नीतिशास्त्र को अंशों में न देखकर समग्र रूप में देखें।"1
प्लेटो, अरस्तु, स्पिनोजा, हेगेल आदि इसी विचारधारा के समर्थक हैं किन्तु हाब्स और बेन आदि विद्वानों का विचार है कि नीतिशास्त्र, राजनीतिशास्त्र की एक शाखा है। उनके अनुसार राजनैतिक नियम ही नैतिक नियम है।
मैकियावेली तथा उसके अनुयायी-'प्रेम और युद्ध में सब कुछ उचित है (Every thing is fair in love and war)' इस सिद्धान्त के समर्थक हैं। अतः वे राजनीति और नीतिशास्त्र में किसी प्रकार का सम्बन्ध मानने को प्रस्तुत नहीं हैं। उनका विचार है कि राज्य की आज्ञा ही नीति है। किन्तु इस मान्यता का समर्थन आधुनिक युग के विद्वान नहीं करते ।
यद्यपि राजनीति और नीतिशास्त्र में कई अन्तर हैं, जैसे- राजनीति और नीति के लक्ष्यों की भिन्नता, विषय की भिन्नता आदि और सबसे बड़ा जन्तर है नियमों के स्वरूप का। राजनीति के नियम ‘करना होगा' (must) के स्वरूप वाले हैं, जबकि नैतिक नियमों का स्वरूप है 'चाहिए' (ought) किन्तु इन दोनों शास्त्रों में समानताएँ अधिक हैं
(१) दोनों ही शास्त्र मानवीय व्यवहारों से सम्बन्धित हैं। (२) दोनों ही नियामक विज्ञान हैं।
(३) राजनीति, नैतिकता पर आधारित होनी चाहिए । प्लेटो, महात्मा गांधी आदि विचारक इस मान्यता के समर्थक हैं। इनका विचार है कि व्यक्ति से समूह, राष्ट्र, राज्य आदि यहाँ तक कि विश्व का निर्माण होता है अतः व्यक्तिगत नैतिकता का विशाल रूप हो राजनीति का आधार होना चाहिए।
किन्तु कुछ विचारक इस आदर्शवादी राजनीति के समर्थक नहीं हैं। तिलक, श्री अरविन्द आदि व्यवहारवादी राजनीति-विशारदों के विचार
& Politics must be suburdinate to Ethics and we must endeavour to see Ethics not in fragments but as a whole. -Hobhouse, L. T. : The Elements of Social Justice, pp. 13-14.
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