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८६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
जीवन कैसे जिया जा सकता है, इस बात में सहायता अवश्य मिलती है।
___ उदाहरणार्थ चातुर्मास किसी विशेष क्षेत्र में कब शुरू होगा और कब समाप्त होगा अर्थात् वर्षा के समय का पूर्वज्ञान होने से मानव (साधक) जीवहिंसा से बच सकता है । नीतिशास्त्र और जीवशास्त्र (Ethics and Biology)
मानव मूल रूप से एक जीव (Living being) है और . जीवशास्त्र मानव का इसी रूप में अध्ययन करता है। जीव-जगत के नियम उस पर भी लागू होते हैं। डार्विन और उसके अनुयायियों ने 'अस्तित्व के लिए संघर्ष' (struggle for the existence) तथा 'योग्यतम की विजय' (survival of the fittest) जैसे जीवशास्त्रीय सिद्धान्तों द्वारा मानव जीवन की व्याख्या करने का भी प्रयास किया है।
ऐसा ही प्रयास हरबर्ट स्पेन्सर ने भी नीतिशास्त्र के क्षेत्र में अपनी पुस्तक (Principles of Ethics) में किया है। वह कहता है कि पशु-जीवन और मानव-जीवन के शुभाशुभ की कसौटी,एक ही होती है। ऐसा कोई आदर्श नैतिक नहीं माना जा सकता, जिसके कारण जीवन ह्रासमान हो जाय।
किन्तु स्पेन्सर की यह मान्यता उचित प्रतीत नहीं होती। जीवशास्त्र का महत्व इतना ही है कि वह मानव-प्रकृति की व्याख्या करे। इसके आगे नीतिशास्त्र का काम है कि वह मानव प्रकृति के अनुकूल आदर्श स्थापित करे।
यह भी एक सर्वमान्य तथ्य है कि पशु-जगत के नियम मानव-जगत में नहीं चल सकते । पशुत्व से ऊपर उठना ही मानवता है-नैतिकता है ।
यदि विज्ञान की भाषा में ही कहा जाये तो मानव एक बौद्धिक पशु (Rational animal) है, अतः इसकी नैतिकता के नियम बुद्धि द्वारा ही निर्धारित किये जा सकते हैं, जैविकीय (Biological) आधार पर नहीं।
___ अतः नीतिशास्त्र से जीवविज्ञान का सम्बन्ध इतना ही माना जाना चाहिए कि जीवविज्ञान जो भी मानव प्रकृति के सम्बन्ध में खोज करे, उसका नैतिक आदर्श निर्धारण करने के लिए नीतिशास्त्र में उचित उपयोग कर लिया जाय। नीतिशास्त्र और राजनीति (Ethics and Politics)
राजनीति और नीतिशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीति को
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