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नीतिशास्त्र की परिभाषा | ७६
यही मार्ग ( न्याय-नीति का मार्ग) ध्रुव ( निश्चित व शाश्वत ) है । किन्तु इस मार्ग पर चलना कठिन है । वीर ( साहसी), संकल्प के धनी, पाप ( बुराइयों - Evils) से दूर रहने वाले पवित्र मानव ही इस सिद्धि पथ ( शुभ मार्ग - good) पर चल सकते हैं । 1
भगवान महावीर के इन शब्दों में सम्पूर्ण नीति का समावेश हो गया है । नीति का आधार और लक्ष्य शुभ अथवा परम शुभ है और इसकी प्राप्ति का मार्ग - शुभ की ओर गति प्रगति है । शुभ की ओर प्रगति और परम शुभ की प्राप्ति केवल साहसी व्यक्ति ही कर सकते हैं । उसके साथ भी शर्त यह है कि उनके हृदय में सत्य और शुभ प्रतिष्ठित हो ।
भारतीय और पश्चिमी सभी नीति - चिन्तकों ने सत् (right) और शुभ ( good) को नीति - शास्त्र का आधार एवं लक्ष्य माना है । लौकिक रीति-रिवाजों का पालन, कर्तव्य - अकर्तव्य आदि जितनी भी बातें हैं, वे सब इस सत् और शुभ की सहचरी मात्र हैं, 'चाहिए' ( ought ) भी उस सत्शुभ की प्राप्ति में सहायक बनते हैं ।
इस सम्पूर्ण विवेचन के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि -नीतिशास्त्र जीवन को सफलतापूर्वक जीने की कला सिखाता है । यह मानव-जीवन के भौतिक, सामाजिक, पारिवारिक, वैयक्तिक, आध्यात्मिक आदि सभी पक्षों को नियमबद्ध, संतुलित और व्यवस्थित रखने की कला है ।
संक्षेप में यह जीवन का नियामक विज्ञान है और यह विचार समग्र रूप से सभी नीति- विचारकों को इष्ट है ।
१ पणया वीरा महावीहि सिद्धिपहं याजयं धुवं ।
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-- सूत्रकृतांग १/२/१/२१
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