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७८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
सम्बन्धी विचार करने का अधिकारी उसे ही माना गया है जिसका जीवन स्वयं नीति से अनुप्राणित हो। नीतिमान ही नीति पर विचार करता था।
चूंकि भारत में नीतिशास्त्र जीवन का अभिन्न अंग रहा अतः यहाँ इसका क्रमबद्ध चिन्तन नहीं प्राप्त होता। तटस्थ दृष्टि से उस पर विचार किया ही नहीं गया। भारतीय नीतिशास्त्र के रूप में जो कुछ भी प्राप्त है, वह जीवन का सत्य है । आचारशास्त्र का ही एक अंश है।
नीतिशास्त्र के रूप में कुछ सूक्तियाँ ही प्राप्त होती है, वह भी उपदेशात्मक रूप में जो जीवन-निर्माण की प्रेरणा देती हैं । किन्तु वे सूक्त्यात्मक वाक्य भी इतने प्रेरणाप्रद और जीवन-स्पर्शी हैं कि नीतिशास्त्र का सम्पूर्ण विषय उनमें सरलता से समाहित हो जाता है । भ० महावीर के नीति वचन
___ भगवान महावीर के प्रवचनों में एक शब्द प्राप्त होता है-णेआउयं मग्गं । इसका अभिप्राय है--दुःख क्षय करने का मार्ग, अथवा पार ले जाने वाला मार्ग । दूसरे शब्दों में सफलता का वं न्याय युक्त मार्ग ।
सफलता का मार्ग निश्चित रूप से न्याय-नीति का मार्ग है, अन्यायअनीति के मार्ग से तो सफलता प्राप्त हो ही नहीं सकती । आध्यात्मिक और जागतिक दोनों ही क्षेत्रों में मनुष्य विफल हो जाता है।
इस न्याय (कल्याण अथवा शुभ good) मार्ग को सुनकर/पढ़कर जानकर ही मानव कल्याण अथवा शुभ को जानता/पहचानता है ।।
लेकिन वह शुभ का मार्ग इतना कठिन है कि बहुत से लोग इसे जान-सुनकर-समझकर भी इससे भ्रष्ट हो जाते हैं।
१ (क) णयणसीलो णेआउयो
--सूत्रकृतांगचूणि, पृ० ४५५ (ख) नयनशीलो नेयाइयो मोक्षं नयतीत्यर्थः -सूत्रकृतांगचूणि पृ० ४५७ (ग) न्यायोपपन्नः इत्यर्थः
-उत्तरा० बृहदवृत्ति पत्र १८५ (यही अर्थ ल्यूमेन, पिशेल, हरमन जेकोबी आदि ने भी स्वीकार किया
-उत्तरा. चार्ल्स सरपेन्टियर, पृ० २६२) (घ) उत्तरा. ३/8; ७/२५ २ सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं । -दशवकालिक ४/११ ३ (क) सोच्चा णेआउयं मग्गं बहवे परिभस्सइ ।
-उत्तरा० ३/६ (ख) सोच्चा णेआउयं मग्गं जं........।
-उत्तरा० ७/२५
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