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७६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
नियमवादियों (Formalists) का अभिमत है कि नैतिक नियम स्वयं साध्य हैं, दूसरे शब्दों में आदर्श हैं । वे किसी अन्य आदर्श के लिए साधन नहीं कहे जा सकते ।
अतः काण्ट ने 'कर्तव्य के लिए कर्तव्य का सिद्धान्त' ( Doctrine of duty for duty sake) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। उसके मतानुसार . (goodwill ) ही एक मात्र शुभ ( good ) है । उसका 'शुभत्व' परिणाम पर निर्भर नहीं है, अपितु वह स्वयं शुभ है । इसके अनुसार नैतिक नियम सहज प्रभुत्व सम्पन्न और सार्वभौम हैं ।
किन्तु सहजज्ञानवादियों के अनुसार नीतिशास्त्र (Right ) का विज्ञान है | सहजज्ञानवादियों ( Intuiticnists) के अनुसार नैतिक नियम बाध्य हैं, सभी परिस्थितियों में उनका पालन आवश्यक है । सत् ही नीतिशास्त्र का का मूल प्रत्यय ( concept ) है । नैतिक नियमों के अनुसार चलना ही शुभं है, कर्तव्य है और इनके विपरीत आचरण अशुभ तथा अकर्तव्य ।
प्रयोजनवादियों (Teleologists) के मतानुसार 'शुभ' ही नीति शास्त्र का परम तत्व है । वे 'कर्तव्य कर्तव्य के लिए' न मानकर 'कर्तव्य नैतिक शुभ के लिए' मानते हैं । किसी कार्य के उचित - अनुचित का निर्णायक शुभ के मानदण्ड का प्रयोग ही हो सकता है ।
इसके अनुसार सत् और नियम 'परम आदर्श अथवा साध्य' के साधन हैं । यह 'परम आदर्श' ही नीतिशास्त्र की खोज का विषय है ।
प्रयोजनवादी नीतिशास्त्री बेन्थम ( Bentham), मिल (Mill), हेनरी सिजविक (Henry Sidgwick ) आदि कार्य का शुभत्व या अशुभत्व उसके परिणाम के आधार पर मानते हैं ।
मैकेन्जी ने इन तीनों मतों के समन्वय का प्रयास किया है । वह नीतिशास्त्र को मानव-जीवन के आदर्शों का विज्ञान अथवा सामान्य अध्ययन ' के रूप में स्वीकार करता है ।
सिविक ने नीतिशास्त्र को मानव- चरित्र की समस्याओं का क्रमबद्ध अध्ययन कहा है | 2
1 Ethics, as the science or general study of the ideal involved in human life.
2
—Mackenzie, J. S.; A Manual of Ethics, p. 4
Ethics is the systematic study of the ultimate problems of right human conduct
-Sidgwick
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