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७४ / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
हुआ कहता है कि 'सरकारें अपने हितों के अनुकूल कानून बनाती हैं और उन कानूनों के अनुसार न्यायाधीश न्याय करते हैं। तब न्याय कैसा ?" 1
यही विचार एक अन्य विचारक ने कुछ और भी कटु शब्दों में व्यक्त किये हैं
"न्याय, मानव के लिये नैतिकता नहीं अपितु निम्न अथवा दलित मानव (विवश कमजोर मानव) के लिए नैतिकता हो सकती है। यह दासनैतिकता है, स्वाभिमानपूर्ण वीर नैतिकता नहीं है ।
बदलती हुई सरकारों, राजाओं, सत्ताधारियों के सन्दर्भ में ये सब बातें सत्य से परे नहीं हैं, दैनन्दिन अनुभव की बातें हैं। ... इतने पर भी सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत न्याय, सामाजिक न्याय, न्याय का मानव-जीवन तथा समाज की व्यवस्था में महत्व और न्याय प्राप्त करने के उचित साधनों आदि का विवेचन नीतिशास्त्र का विषय बन सकता है।
सम्भवतः प्लेटो की भी यही मंशा थी । यदि न्याय सबको सुलभ हो सके तो सम्पूर्ण समाज में स्वयमेव ही समग्रता और समन्वय स्थापित रहेगा।
.यूनानी दार्शनिकों का समय काफी पुराना है-ईसा से ५-६ शताब्दी पूर्व का। उसके बाद वहाँ ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में काफी लम्बा अन्तराल रहा । मध्ययुग, इस दृष्टि से अन्धकारपूर्ण रहा । उसके बाद ईसा की सत्रहवीं शताब्दी में पुनर्जागरण (renaissance) हुआ और यूरोप–पश्चिमी जगत ने प्रगति की ओर कदम बढ़ाये। ज्ञान-विज्ञान का भी पुनर्जागरण हुआ। इसके बाद नीतिशास्त्र पर भी काम हुआ।
मैकेन्जी (Mackenzie) के अनुसार-“नीतिशास्त्र सत् (good) और शुभ (right) का अध्ययन है।"3
1 Will Durant : The Story of Philosophy, p. 16. 2 The justice is morality not for men but for footmen (oude gar
andros all' andrapodou tinos) it is a slave-morality, not a hero morality
-Gorgias 491 -- Quoted by Will Durant : The Story of Philosophy, p. 87 3. Ethics may be defined as the study of what is Right or Good in conduct. -Mackenzie, J. S. : A Manual of Ethics, p. 1
-उद्धृत--डा० रामनाथ शर्मा : नीतिशास्त्र की रूपरेखा. प्र०३
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